eng
competition

Text Practice Mode

साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Aug 13th 2022, 03:26 by lucky shrivatri


2


Rating

396 words
11 completed
00:00
चुनाव सुधारों के तमाम दावे भले ही किए जा रहे हों लेकिन अभी तक राजनीतिक दल वह तंत्र कायम नहीं कर पाए हैं जिसके जरिए जनता की इच्‍छा के अनुरूप उम्‍मीदवार चुनाव मैदान में उतारा जा सके। यही वजह है कि मतदान में उन लोगों की संख्‍या लगातार बढ़ती जा रही है जो इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में नोटा यानी उपरोक्‍त से कोई नही वाले वटन का इस्‍तेमाल कर यह बता रहे हैं कि उन्‍हें कोई भी उम्‍मीदवार पसंद नहीं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्‍स (एडीआर) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल में किसी भी पार्टी अथवा स्‍वतंत्र उम्‍मीदवार को योग्‍य मानते हुए चुनावों में नोटा का बटन दबाने वालों की संख्‍या 1 करोड़ 29 लाख के पार पहुंच गई है। देश में लगभग 91 करोड़ मतदाता है, जिनमें से औसतन करीब 61 करोड़ लोग मतदान करते है। अंदाजा लगा सकते है कि नोटा को चुनने वाले लोगों की संख्‍या का लगातार बढ़ता जाना कितना चिंताजनक है। वर्ष 2013 में जब देश के तत्‍कालीन प्रधान न्‍यायाधीश पी. सदाशिवम ने नोटा कानून लागू करने का निर्णय पारित किया था, तब उन्‍होंने कहा था कि पार्टियों, उनकी नीतियों और उम्‍मीदवारों के प्रति असहमति की अभिव्‍यक्ति का यह अधिकार भारतीय लोकतंत्र में धीरे-धीरे सुधारात्‍मक परिवर्तन लाने का आधार बनेगा। पार्टियां लोगों की इच्‍छा का सम्‍मान करने के लिए बाध्‍य होंगी और अंतत: वे अच्‍छा उम्‍मीदवार उतारने लगेगी। यह रिपोर्ट उस निर्णय के पहले हिस्‍से के अनुरूप है, जिसके मुताबिक लोगों की इच्‍छा सामने रही है। पर इस इच्‍छा का सम्‍मान करते हुए धीरे-धीरे, योग्‍य, नैतिक, चारित्रिक और समर्पित उम्‍मीदवार चुनने की बाध्‍यता राजनीतिक पार्टियों में अभी दूर की कौड़ी ही है। कोई भी पार्टी इससे काई सबक लेती नहीं दिख रही है। वे येन-केन प्रकारेण सिर्फ अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहती है और इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार प्रतीत होती है। यही कारण है कि हर चुनाव में बड़ी संख्‍या में भ्रष्‍टाचारी, अपराधी, दबंग और बाहुबली टिकट पा रहे है। यह स्थिति तब है जब राजनीतिक पार्टियों को यह भी समझ गया है कि नोटा सिर्फ वोट बर्बादी नहीं है। यह राज्‍यों के सत्ता निर्धारध तक में निर्णायक पहलू बनने लग गया है। गुजराज, कर्नाटक, मध्‍यप्रदेश और राजस्‍थान के विधानसभा चुनावों में पहली दो पार्टियों के बीच वोटों का अंतर नोटा की संख्‍या से कम था। जाहिर है कि स्‍वच्‍छ राजनीति बेदाग उम्‍मीदवारों का चयन ही लोकतंत्र को मजबूत करेगा।  

saving score / loading statistics ...