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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Aug 13th 2022, 03:29 by Ramprashad dubey


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इको सिस्‍टम और इगो सिस्‍टम देनों ही इस धरती पर जीवन की गुणवत्ता को गहरे से प्रभावित करते हैं। हवा, पानी, प्रकाश, मिट्टी और अनन्‍त रूप स्‍वरूप की वनस्‍पतियों से इको सिस्‍टम अस्तित्‍व में आया। इको सिस्‍टम को जीवन का बीज भी मान सकते हैं। इसी तरह मन, विचार, लाभ, लालसा या इच्‍छा, समृद्धि-प्रसिद्धि, भाव एवं अभाव के साथ ही शक्ति के निरन्‍तर विस्‍तार से इगो सिस्‍टम का जन्‍म हुआ। मनुष्‍य तो एक तरह से वनस्‍पति के परजीवी की तरह ही है। इको सिस्‍टम ही मुष्‍य की जीवनी शक्ति का जन्‍मदाता है। मनुष्‍य जीवन के निरन्‍तर अस्तित्‍व के लिए इको सिस्‍टम अनिवार्य है। बिना मनुष्‍य की उपस्थिति के जो भी इलाके इस धरती पर है, वहां का इको सिस्‍टम अपने आप में प्राण शक्ति या जीवन की ऊर्जा का शुद्धतम स्‍वरूप है। मनुष्‍य की बहुतायत वाले धरती के हिस्‍से इको सिस्‍टम को प्रदूषणमुक्‍त नहीं रख पाते। मनुष्‍यविहीन धरती के हिस्‍से अपने मूल स्‍वरूप में हमेशा शुद्ध प्राकृतिक ही बने रहते हैं। मनुष्‍य जीवन की अंतहीन प्रदूषणकारी हलचलों से ऐसा लगता है कि इको सिस्‍
टम में बदलाव रहा है, पर वाकई में ऐसा कुछ समय तक ही सीमित होता है। जैसे ही मनुष्‍य की विध्‍वंसक हलचलों में कमी आती है, इको सिस्‍टम पुन: यथावत होने की अनन्‍त क्षमता रखता है। आधुनिक मनुष्‍य समाज पेट्रोल-डीजल आधारित वाहनों पर सवार होकर निरन्‍तर आवागमन करने और प्रदूषणकारी कल कारखानों के साथ रहने का आदी होता जा रहा है। शहरी जीवन में धूल धुंए का साम्राज्‍य हमेशा कायम रहता है। परिणामस्‍वरूप शहरी बसावटों में वायु और ध्‍वनि प्रदूषण की अति हो गई है। कोरोना काल में लॉकडाउन में जब वाहनों के दैनदिन उपयोग में बड़े पैमाने पर कमी आई, तो वायुमंडल में मनुष्‍य जीवन की हलचलों से उत्‍पन्‍न प्रदूषण मे कमी आई। नतीजा यह हुआ कि इको सिस्‍टम पर वाहनों के अतिशय उपयोग से जो तात्‍कालिक आभासी प्रभाव पैदा हुआ था, वह एकाएक कम होने से हमें वायु प्रदूषण के कारण हिमालय की जो दृश्‍यालियां लुप्‍तप्राय हो गई सी लगती थी, वे पुन: दिखाई देने लगीं। यानी उनका अस्तित्‍व तो था और रहेगा भी। तन-मन की शक्ति से जब तक मनुष्‍य समाज की दैनिक जीवन की हलचलों का संचालन होता रहा, दुनया में इको सिस्‍टम को लेकर चिंति होने का भाव नहीं उभरा। अब तन और मन की बजाए उधार की ऊर्जा से चलने वाला रास्‍ता मनुष्‍य जीवन का स्‍थाई भाव बनने लगा, तो इको सिस्‍टम को बचाने की चर्चा होने लगी। मुश्किल यह है कि आधुनिक काल में इगो सिस्‍टम की गिरफ्त में आज के अधिकांश मनुष्‍य गए हैं। अंतहीन विवादों का सिलसिला इगो सिस्‍टम को मजबूत कर रहा है। इगो सिस्‍टम के सह उत्‍पाद हिंसा, आतंकवादी गतिविधियां और तानाशाही पूर्ण शासन है। इगो सिस्‍टम ने मनुष्‍य जीवन को जितना व्‍यक्तिश: अशांत कर दिया है, उससे कहीं ज्‍यादा सामूहिक रूप से संकुचित और बारहमासी असहिष्‍णुता का पर्याय बना दिया है।  

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