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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Mar 18th, 11:00 by sandhya shrivatri


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स्‍वादिष्‍ट खाना खिलाते हुए क्षार शब्‍द के उपयोग से खाने का स्‍वाद बिगड़ जाता है तथा मधुर शब्‍दों के उपयोग से रूखा-सूखा भोजन भी स्‍वादिष्‍ट लगता है। धर्म की बात अनेक विद्वान करते हैं, आवश्‍यक है धार्मिक वातावरण बनाने की तथा यह वातावरण तब ही संभव है जब अनुपात उचित हो। धर्म के अनेक रूप है। कर्त्तव्‍य भी धर्म का ही एक रूप है, किन्‍तु उचित काल स्‍थान पर उचित धर्म से ही परिणाम अनुकूल मिलते हैं। जिस प्रकार घर में आए मेहमानों को सुस्‍वादु व्‍यंजन उपलब्‍ध कराएं, किन्‍तु समयानुकूल बात करें तो मेहमान अपमान का अनुभव करेगा, कहेगा कि आदमी खाना तो खिला रहा है किन्‍तु प्रेम व्‍यवहार के दो शब्‍द भी नहीं बोलता। इसके विपरीत भूखे मेहमानों को भोजन देकर केवल मीठी-मीठी बातें करें, तो भी मेहमान को क्रोध आएगा, क्‍योंकि भोजन नहीं करा रहा। अकेले बातों से पेट भरने वाला नहीं, भले ही उसे मोती का हार पहना दो। भूखे को स्‍वागत में हार की नहीं, आहार की जरूरत होती है। बंधुओ! तात्‍पर्य यह है कि देश, काल के अनुरूप व्‍यवहार करें तथा अनुपात उचित रखें, तभी परिणाम अनुकूल निकलेगा। अन्‍यथा जो काल पर आए, वही अकाल है। काल पर वर्षा नहीं तो अकाल पड़ गया। फसल नहीं, अनाज नहीं, भूख नहीं मिटी, भूखमरी छा गई। भोजन समय पर मिलना भी अकाल है। इस परिस्थिति में भूखे के पास अनाज पहुंचाना भी धर्म है, राहत है। देश काल, द्रव्‍य भाव के अनुरूप ही चलना चाहिए। समय पर भोजन नहीं मिलने से भूख मर जाती है, मंदाग्नि हो जाती है। धर्म को पकड़ना आसान नहीं है। ज्ञान के साथ स्‍थान का भी ध्‍यान रखना चाहिए। नमक को खाओ तो भी काम नहीं चलता, नमक के बिना भी भोजन का महत्‍व नहीं है। अनुपात का महत्‍व है।  

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