Text Practice Mode
SHREE BAGESHWAR ACADEMY TIKAMGARH (M.P.)CPCT Contact- 8103237478 ☺''आपकी मेहनत हमारा प्रयास''☺
created Sep 21st, 04:27 by Shreebageshwar Academy
0
325 words
61 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
saving score / loading statistics ...
00:00
राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की सैद्धांतिक मांग पुरानी है। अपेक्षा की जाती थी कि राजनीतिक दल खुद महिलाओं को राजनीति में आगे लाएं और वे अपने दम पर अपनी जगह बनाएं। मगर यह विचार व्यावहारिक रूप लेता नहीं दिख पाया, तो सिफारिश की गई कि लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं केलिए एक तिहाई सीटें आरक्षित कर दी जाएं। इसे लेकर मसविदा भी तैयार हुआ। संसद में उसे कानूनी दर्जा दिलाने की भी कोशिशें होती रहीं, मगर विभिन्न राजनीतिक दलों के विरोध के चलते इसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। पिछले सत्ताईस सालों सें यह विधेयक अधर में झूल रहा है। अब सरकार ने एक बार फिर इसे लोकसभा में पारित कराने का मन बना लिया है। विधेयक सदन में पेश कर दिया गया है। अगर इसे कानूनी दर्जा मिला गया तो लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या बढ़ कर एक सौ इक्यासी हो जाएगी। फिलहाल उनकी संख्या बयासी है। इसी तरह विधानसभाओं में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ जाएगी। प्रस्तुत विधेयक को केवल पंद्रह सालों तक लागू रखने का प्रस्तव है। इसके बाद नए सिरे से इसे सदन में पारित कराना पड़ेगा। ऐसा इसलिए कि राजनीति में अगर महिलाओं की भगीदारी सशक्त होती है, तो शायद इस कानून की जरूरत ही न पड़े।
लोकसभा में सरकार मजबूत स्थिति में है, इसलिए इस विधेयक के पारित होने में कोई अड़चन महसूस नहीं की जा रही। राज्यसभा में यह पहले ही पारित हो चुका है। फिर, इसकी मांग विपक्षी दल भी लंबे समय से कर रहे थे। संसद का विशेष सत्र शुरू हुआ तब भी सभी दलों की ओर से इस विधेयक को सदन में पेश करने की मांग उठी। कोई भी दल महिला आरक्षण के विरोध में कभी नहीं रहा है, बस मतभेद इसके मसविदे के बिंदुओं को लेकर उभरते रहे हैं। समाजवादी और वामपंथी दल इसका इसलिए विरोध करते रहे हैं कि हाशिये के कहे जाने वाले तबकों की महिलाओं के लिए इसमे कोई स्पष्ट रेखा तय नहीं की गई थी।
लोकसभा में सरकार मजबूत स्थिति में है, इसलिए इस विधेयक के पारित होने में कोई अड़चन महसूस नहीं की जा रही। राज्यसभा में यह पहले ही पारित हो चुका है। फिर, इसकी मांग विपक्षी दल भी लंबे समय से कर रहे थे। संसद का विशेष सत्र शुरू हुआ तब भी सभी दलों की ओर से इस विधेयक को सदन में पेश करने की मांग उठी। कोई भी दल महिला आरक्षण के विरोध में कभी नहीं रहा है, बस मतभेद इसके मसविदे के बिंदुओं को लेकर उभरते रहे हैं। समाजवादी और वामपंथी दल इसका इसलिए विरोध करते रहे हैं कि हाशिये के कहे जाने वाले तबकों की महिलाओं के लिए इसमे कोई स्पष्ट रेखा तय नहीं की गई थी।
