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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH-SUBODH KHARE 'शेर फल क्यों नही खाता'
created May 15th 2017, 07:15 by GuruKhare
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इस के उत्तर में मुझे एक अफ्रीकी जनजाति की कहानी याद आती है, एक मबावा नाम का एक सियार था, एक दिन उसने फलों से लदें था, नामक पेड़ को खोज निकाला। उसेने पेड से गिरे पके रसीले फल इकठ्ठे किये और बस उनका स्वाद लेकर खाने बैठा ही था कि उसे दूर से आती शेर की दहाड सुनाई दी। उस चतुर सियार ने सोचा कि, लगता है शेर भूखा है, ऐसा न हो कि वह इधर ही चला आए और ये मीठे फल मुझसे छीन कर खा जाए। वह चिन्तित हो गया कि सभी जानते हैं कि शेर तो जंगल का राजा है, और राजा होने के नाते उसकी भूख बहुत ज्यादा है। और वह सबके खाने को छीन कर खाने को अपना अधिकार समझता हैं। उससे ना करने की किसी की हिम्मत तक नहीं होती। शेर की दहाड अब पास से आती सुनाई दी, लेकिन अब तक चतुर सियार ने शेर से था के रसभरे मीठे फलों को बचाने की तरकीब खोज निकाली थी। जैसे जैसे शेर पास आ रहा था। मबावा ने जल्दी जल्दी फलों के ढेर को खाना शुरू कर दिया, उसे पता चल गया कि शेर उसे लालचियों की तरह जल्दी जल्दी खाते हुए देख रहा है, तब अचानक वह जमीन गिर पडा और छटपटाने लगा और कराहने लगा फिर छटपटा कर मृत जानवर की तरह शांत और और स्थिर हो गया, आखें भी उसने एक जगह टिका दीं। शेर ने सोचा कि जरूर ये फल जहरीले होंगे तभी ये बेवकूफ सियार इन्हें खाकर मर गया है। शेर अपने रास्ते लौट गया। उसके नजरों से खूब दूर चले जाने के बाद मबावा उठा, उसने बचे हुए रसीले फल खाये और उसे याद आया कि पास ही नाले के पास एक दूसरे सियार का कंकाल पडा है। वह उसे उठा लाया और फलों के छिलकों के पास उसे पटक दिया, ठीक वहां जहां उसने अपने मरे हुए होने का नाटक किया था। अपनी तरकीब पर खुश होता हुआ सियार अपनी गुफा में लौट गया। जब कुछ सप्ताह बाद शेर था फल के पेड के पास से गुजरा तो पेड उसी तरह लाल रसीले फलों से लदा था, उसकी भूख जग आई वह कुछ कदम बढा पर वह ठिठक गया वहां बेचारे लालची सियार का कंकाल पड़ा था। उसे गिद्ध नोच रहे थे। उसे याद आ गया कि ओह यह तो मबावा का कंकाल है वही यहां लालची की तरह इन फलों को हबड हबड खा रहा था। फिर छटपटा कर गिर गया था। उसने कसम खाई कि वह अब कभी किसी पेड का फल नहीं खाएगा। तब तक का दिन और आज का दिन शेर ने कभी किसी पेड के फल नही खाये।
