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mangal font typing

created Aug 28th 2017, 05:50 by user1387054


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ऐसी प्रवृति को देखकर लगता है कि ये टीवी चैनल वाले लोग जनता के साथ कितना अशोभनीय उपहास करते हैं? इनके इस प्रकार के उपहास के भी कुछ कारण होते हैं, यथा-अधिकतर ऐसा होता है कि जो एंकर होता है उसे स्वयं भी पता नही होता कि उसे जो विषय दिया गया है उसकी गंभीरता क्या है? उसे वही करना होता है जो उसके लिए पहले से ही निश्चित होता है। इसमें हम राजनीतिक चर्चाओं को रख सकते हैं। एंकर जिस राजनीतिक विचारधारा का मानने वाला होता है वह उसी विचारधारा से प्रेरित होकर चर्चा को अपने अनुसार मोडऩे का प्रयास करता रहता है, या उस पर टीवी चैनल के स्वामी का जैसा दबाव होता है, या वह टी वी चैनल जिस किसी राजनीतिक पार्टी या विचारधारा से प्रवाहित होता है उसी के अनुसार चर्चा को मोड़ लिया जाता है। जबकि यही चर्चा यदि भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास पर होने लगे तो उस क्षेत्र में तो इन एंकरों का अधकचरा ज्ञान और भी अधिक क्षतिकारक हो उठता है। अधिकतर एंकरों को धर्म की परिभाषा ज्ञात नही है, वह संस्कृति शब्द की भी परिभाषा नही जानते और इतिहास का उन्हें कामचलाऊ ज्ञान ही होता है। वह संप्रदायों को धर्म मानकर बोलते जाते हैं और अपने ढंग से ही चर्चा का संचालन करते रहते हैं। वह अपने ज्ञान को विस्तार देना नही चाहते और संस्कृत का लगभग शून्य ज्ञान होने के कारण वेद-उपनिषद या स्मृतियों के उद्वरणों को ना तो समझ पाते हैं और ना ही उनका प्रयोग करते हैं। इसलिए वह कभी-कभी तो किसी की अत्यंत तार्किक बात को भी विवादास्पद कह देते हैं। टी.वी. चैनलों पर या समाचार पत्र-पत्रिकाओं में ऐसे समाचार अक्सर सुनने पढऩे को मिल जाते हैं जिन्हें मीडिया वाले लोग अपनी ओर से ही विवादास्पद बना देते हैं या उसका महिमामंडन इसी रूप में कर देते हैं, क्या यह सब कुछ अलोकतांत्रिक नही है? इसमें हमें तो कहीं भी मीडिया धर्म दिखाई देता नही है। उदाहरण के रूप में हम बिसाहड़ा काण्ड को लें। इस काण्ड में मीडिया पहले वही बोलता रहा जो ठीक नही था। जब बिसाहड़ा के ही लोगों ने मीडिया पर पथराव करके उसे भगाना आरंभ किया तो कुछ मीडिया बंधुओं की आंखें खुलीं और उन्होंने कुछ तथ्यात्मक बातें उठानी आरंभ कीं। पत्थर खाकर बिसाहड़ा की भ्रामक बातों पर इन्होंने मौन साधा तो मालदा की घटना पर पूर्णत: मौन रहकर बता दिया कि ये देश में साम्प्रदायिक माहौल को बिगाडऩे वालों के प्रति कितने कठोर हैं? बिसाहड़ा काण्ड के पश्चात कुछ नही बातें सामने आयीं। मीडिया ने अपनी धर्मनिरपेक्षतावादी बुद्घि का परिचय देते हुए गोमांस को इंग्लिश में बीफ कहना आरंभ कर दिया। अब बीफ पर चर्चा होती है, मानो वह गोमांस की बात ही नही कर रहे हों। ऐसे बुद्घिशून्य और मूर्ख लोगों के बयान समाचारपत्रों में छपते हैं जिन्हें गोवंश की वैज्ञानिकता का कोई बोध नही है, और वे कह देते हैं कि बीफ को यदि कुछ लोग खाना चाहते हैं तो खा सकते हैं। इसका कारण वह यह बताते हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसमें हर व्यक्ति को

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