Text Practice Mode
2
494 words
0 completed
4
Rating visible after 3 or more votes
00:00
बाल यौन शोषण के खिलाफ जैसे ही हम अपनी चुप्पी तोड़ेंगे और लोगों को जागरूक करेंगे तो अपराधियों का मनोबल कमजोर होगा। इससे बाल शोषण व हिंसा की दर में स्वत: कमी आएगी। अपराधियों से डरें नहीं बल्कि इस दिशा में जन-जागरूकता अभियान एक बड़ा कदम हो सकता है।
शायद ही ऐसा कोई दिन होता होगा जबकि समाचार पत्र या टेलीविजन के जरिए बाल यौन शोषण की घटना सामने नहीं आती हों। देश के कोने-कोने से ऐसी घटानाएं सामने आती रहती हैं जो रौंगटे खड़े कर देती हैं। ये घटनाएं हमारी सभ्यता, संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता को भी कठघरे में खड़ा कर देती हैं।
बाल यौन शोषण के कई रूप हैं जो समय-समय पर प्रकट होते रहते हैं।पिछले दिनों दिल्ली के रोहणी इलाके से एक ऐसी घटना सामने आई, जिसमें पुलिस ने 10 ऐसे आरोपितों के खिलाफ मुकदमें दायर किए हैं जिन्होंने दो मासूम बच्चों को पहले तो चोरी के इल्जाम में फंसाकर उन्हें प्रताडि़त किया। और फिर, उन दोनों नाबालिगों पर एक दूसरे से अप्राकृतिक यौनाचार करने का दबाव भी बनाया। यह लोगों की विकृत और घृणित होती जा रही मानसिकता को उजागर करता है। समझ नहीं आता कि आखिर कुछ लोग मासूम से मासूम और पवित्र से पवित्र थाती को भी 'खेल और मनोरंजन' में तब्दील कर देना चाहते हैं। गनीमत है कि यह मामला दिल्ली पुलिस के संज्ञान में आ गया। लेकिन, बाल यौन शोषण की ऐसी घटनाएं रोजाना घटित होती रहती हैं और उसकी खबरें आम लोगों तक पहुंच भी नहीं पाती हैं।
नेशनल क्राइम रिसर्ज ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में रोजाना 40 बच्चे बलात्कार के शिकार होते हैं, 48 के साथ दुराचार होता है, 10 बच्चे ट्रैफिकिंग के शिकार होते हैं। हर 6 मिनिट में एक बच्चा लापता हो जाता है। यही नहीं चाइल्ड ट्रैफिकिंग और लापता हुए बच्चों का इस्तेमाल भी किसी ने किसी रूप में यौन शोषण के लिए ही किया जाता है। बाल यौन शोषण और हिंसा की घटनाएं हमारे आसपास घटती रहती है। स्कूल, चौक-चौराहे, घर-परिवार ऐसी कोई जगह नहीं बची हैं जहां बच्चों के साथ यौन शोषण और दुराचार जैसी अमानवीय घटनाएं नहीं हो रही हों। लेकिन, यह सब देख और सुनकर भी हम चुप रह जाते हैं। इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाते। पता नहीं हमारी संवेदनाओं को क्या हो गया है?
बाल यौन शोषण के खिलाफ जैसे ही हम अपनी चुप्पी तोड़ेंगे और अपने साथ-साथ लोगों को जागरूक करेंगे तो अपराधियों का मनोबल कमजोर होगा और बाल शोषण व हिंसा की दर में स्वत: कमी आ जाएगी। अपराधियों से डरने की कोई जरूरत नहीं है। इस दिशा में जन-जागरूकता अभियान एक बड़ा कदम हो सकता है और इसी उद्देश्य के साथ नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने हाल ही में देशव्यापी भातर यात्रा का आयोजन किया। इन जन-जागरूकता अभियान में देश के 12 लाख से ज्यादा लोग जुड़े और 'सुरक्षित बचपन, सुरक्षित भारत' के निर्माण का संकल्प लिया। उन्होंने यह भी संकल्प लिया कि वे बाल यौन शोषण और चाइल्ड ट्रैफिकिंग के खिलाफ पूरे देश में जागरूकता अभियान चलाएंगे।
शायद ही ऐसा कोई दिन होता होगा जबकि समाचार पत्र या टेलीविजन के जरिए बाल यौन शोषण की घटना सामने नहीं आती हों। देश के कोने-कोने से ऐसी घटानाएं सामने आती रहती हैं जो रौंगटे खड़े कर देती हैं। ये घटनाएं हमारी सभ्यता, संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता को भी कठघरे में खड़ा कर देती हैं।
बाल यौन शोषण के कई रूप हैं जो समय-समय पर प्रकट होते रहते हैं।पिछले दिनों दिल्ली के रोहणी इलाके से एक ऐसी घटना सामने आई, जिसमें पुलिस ने 10 ऐसे आरोपितों के खिलाफ मुकदमें दायर किए हैं जिन्होंने दो मासूम बच्चों को पहले तो चोरी के इल्जाम में फंसाकर उन्हें प्रताडि़त किया। और फिर, उन दोनों नाबालिगों पर एक दूसरे से अप्राकृतिक यौनाचार करने का दबाव भी बनाया। यह लोगों की विकृत और घृणित होती जा रही मानसिकता को उजागर करता है। समझ नहीं आता कि आखिर कुछ लोग मासूम से मासूम और पवित्र से पवित्र थाती को भी 'खेल और मनोरंजन' में तब्दील कर देना चाहते हैं। गनीमत है कि यह मामला दिल्ली पुलिस के संज्ञान में आ गया। लेकिन, बाल यौन शोषण की ऐसी घटनाएं रोजाना घटित होती रहती हैं और उसकी खबरें आम लोगों तक पहुंच भी नहीं पाती हैं।
नेशनल क्राइम रिसर्ज ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में रोजाना 40 बच्चे बलात्कार के शिकार होते हैं, 48 के साथ दुराचार होता है, 10 बच्चे ट्रैफिकिंग के शिकार होते हैं। हर 6 मिनिट में एक बच्चा लापता हो जाता है। यही नहीं चाइल्ड ट्रैफिकिंग और लापता हुए बच्चों का इस्तेमाल भी किसी ने किसी रूप में यौन शोषण के लिए ही किया जाता है। बाल यौन शोषण और हिंसा की घटनाएं हमारे आसपास घटती रहती है। स्कूल, चौक-चौराहे, घर-परिवार ऐसी कोई जगह नहीं बची हैं जहां बच्चों के साथ यौन शोषण और दुराचार जैसी अमानवीय घटनाएं नहीं हो रही हों। लेकिन, यह सब देख और सुनकर भी हम चुप रह जाते हैं। इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाते। पता नहीं हमारी संवेदनाओं को क्या हो गया है?
बाल यौन शोषण के खिलाफ जैसे ही हम अपनी चुप्पी तोड़ेंगे और अपने साथ-साथ लोगों को जागरूक करेंगे तो अपराधियों का मनोबल कमजोर होगा और बाल शोषण व हिंसा की दर में स्वत: कमी आ जाएगी। अपराधियों से डरने की कोई जरूरत नहीं है। इस दिशा में जन-जागरूकता अभियान एक बड़ा कदम हो सकता है और इसी उद्देश्य के साथ नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने हाल ही में देशव्यापी भातर यात्रा का आयोजन किया। इन जन-जागरूकता अभियान में देश के 12 लाख से ज्यादा लोग जुड़े और 'सुरक्षित बचपन, सुरक्षित भारत' के निर्माण का संकल्प लिया। उन्होंने यह भी संकल्प लिया कि वे बाल यौन शोषण और चाइल्ड ट्रैफिकिंग के खिलाफ पूरे देश में जागरूकता अभियान चलाएंगे।
saving score / loading statistics ...