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created Nov 18th 2017, 04:08 by Amar Prakash


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भारत में वर्ष 1991 से कर सुधारों की जिस प्रक्रिया की शुरुआत हुई है, उसका उद्देश्य पूरे देश में वस्तुओं एवं सेवाओं पर एक समान कर प्रणाली को लागू करना है, जिससे करारोपण की प्रक्रिया को सहज और सरल बनाते हुए कर प्रणाली की जटिलता को कम किया जा सके| इससे एक और जहां भारत में बेहतर प्रतीस्पर्धात्मक कारोबारी माहौल बनाने में सहूलियत होगी, वहीं दूसरी और इससे सरकार के राजस्व में तीव्र वृद्धि की भी संभावना है|
            इस संदर्भ में अप्रत्यक्ष करों में सुधार की दिशा में वैट (मूल्य संवर्द्धित कर) की अगली कड़ी के रुप में “वस्तु एवं सेवा कर” एक महत्वपूर्ण पड़ाव है| वस्तु एवं सेवा कर वस्तुओं एवं सेवाओं पर लगाया जाने वाला एक एकीकृत अप्रत्यक्ष कर है, जिससे केंद्रीय उत्पाद शुल्क, राज्य स्तरीय वेट, चुंगी, क्रय कर, विलासिता कर, मनोरंजन शुल्क, सेवा कर आदि शामिल है|
 
वस्तु एवं सेवा कर का आरोपण आपूर्ति एवं उपयोग के अंतिम चरण पर किया जाएगा| यह कर मूल्यवर्धन के प्रत्येक स्तर पर अनिवार्य रूप से लगाया जाएगा| इसमें प्रत्येक चरण पर किसी भी आपूर्तिकर्ता को टैक्स क्रेडिट सिस्टम के माध्यम से इसकी भरपाई करने की अनुमति होती है| इसमें ग्राहक को केवल आपूर्ति श्रृंखला के अंतिम चरण पर आरोपित कर का ही भुगतान करना होता है|
 
वस्तु एवं सेवा संबंधी कर सुधार को स्वतंत्रता के पश्चात किया जाने वाला सबसे बड़ा एवं दूरगामी प्रभाव वाला कर-सुधार बताया जा रहा है| इसकी पृष्ठभूमि वर्ष 2006-07 के बजट में तैयार होते देखी जा सकती है, जब तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इसे प्रस्तावित करते हुए 1 अप्रैल, 2010 से लागू करने की बात कही थी|अगस्त 2009 में 13वें वित्त आयोग के अध्यक्ष श्री विजय केलकर की अध्यक्षता में वस्तु एवं सेवा कर पर विचार-विमर्श करने के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया| इस सभा में केलकर महोदय ने वस्तु एवं सेवा कर को लागू करने में केंद्र-राज्य के मध्य सहयोग एवं तालमेल को अनिवार्य शर्त बताया तथा केंद्र सरकार को राज्यों की इस मुद्दे पर उत्पन्न चिंताओं के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाने की भी सलाह दी|
 
इस यात्रा की अगली कड़ी जुलाई, 2010 में उस समय जुड़ती है, जब तत्कालीन वित्त मंत्री ने वस्तु एवं सेवा कर संबंधी एकल दर प्रस्तावित करते हुए 3 वर्षीय योजना प्रस्तुत की| इसमें राज्यों हेतु क्षतिपूर्ति के प्रावधानों को भी शामिल करने की बात थी| मार्च, 2011 में सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर संबंधी 115वां संशोधन विधेयक प्रस्तावित किया| इसके अंतर्गत केंद्र राज्यों के मध्य बेहतर तालमेल कायम करने हेतु केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में वस्तु एवं सेवा कर परिषद के गठन का प्रावधान किया गया|इस परिषद कर की दर, सीमा एवं कर घाटों के संबंध में निर्णय हेतु प्रतिबंध होगी| इसके साथ ही इस विधेयक में वस्तु एवं सेवा कर विवाद निपटारा अधिकरण का प्रावधान भी किया गया, जो इस संबंध में उत्पन्न विवादों के निपटारे हेतु कार्य करेगी | इसके अध्यक्ष सर्वोच्च या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश होंगे परंतु राज्यों द्वारा इस संशोधन का व्यापक विरोध करते हुए कहा गया है कि यह संशोधन लागू होने से उनके राजस्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा| साथ ही, यह उनकी वित्तीय स्वायत्तता को भी नकारात्मक रुप से प्रभावित करेगा| वस्तु एवं सेवा कर परिषद में केंद्रीय नेतृत्व के फैसले के अधिभावी होने पर भी राज्यों ने आपत्ति दर्ज किए की| परिणामस्वरुप यह विधेयक पारित ना हो सका|
 
वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी सरकार ने जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) संबंधी 122वां संशोधन विधेयक लोकसभा के शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत किया| इस विधेयक में पूर्व में राज्यों द्वारा उठाई जा रही आपत्तियों के शमन का गंभीर प्रयास किया गया| प्रस्तावित विधेयक में राज्यों को होने वाले संभावित नुकसान की क्षतिपूर्ति हेतु व्यापक प्रावधान करते हुए यह व्यवस्था की गई है कि वस्तु एवं सेवा कर लागू होने की दिशा में प्रत्येक राज्य को पहले 3 वर्ष तक  100% मुआवजा दिया जाएगा, जबकि चौथे वर्ष 75% एवं पाँचवे वर्ष 50% की राजस्व क्षतिपूर्ति प्रदान की जाएगी|

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