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CPCT Exam Practice- GAIL Remington
created Nov 22nd 2017, 05:33 by AbhishekVishwakarma8
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किसी फिल्म के तथ्यों और इतिहास के मामले में अचूक होने की कितनी अपेक्षा की जा सकती है, फिर चाहे दावा किया गया हो कि यह वास्तविक घटनाओं पर आधारित है। यह सवाल युवा निर्देशक राजा मेनन की नई फिल्म की सफलता से उठा है। निश्चित ही कुवैत और इराक से डेढ़ लाख से ज्यादा भारतीयों को वापस स्वदेश लाना उल्लेखनीय भारतीय उपल्ब्धि है और फिल्म बनाए जाने की हकदार है। युद्ध अचानक हुआ था और संकट की मार ज्यादातर निम्न मध्य वर्ग के श्रमिकों पर दिखी, इसलिए कुछ नाटकियता जायज है। किंतु क्या इसे इतना मिथकीय बना दिया जाना चाहिए था। फिल्म में बताया गया है कि हर सरकारी एजेंसी ने प्रवासी भारतीयों की दुर्दशा पर लापरवाही दिखाई। इसमें दूतावास भी शामिल है, जिसका स्टाफ या तो भाग खडा हुआ या (जैसा बगदाद में) उसने पूरी तरह कन्नी काट ली। विदेश मंत्री ने भी यह कह दिया कि सरकार अस्थिर है और कभी गिर सकती है और केवल नौकरशाही ही कुछ कर सकती है, जो स्थायी होती है। यदि भारत वहां फसे भारतीयों को वापस ला सका तो इसके पीछे सिर्फ दो लोग ही थे। इसमें एक तो बेशक हीरो अक्षय कुमार या रंजीत कतियाल था और दूसरे थे कोहली, विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव, जिनका कार्यालय क्लर्क से भी गया-बीता लगता है, जबकि संयुक्त सचिव बहुत ऊंचा पद है, किसी वरिष्ठ राजदूत के समकक्ष कोई बात नहीं। फिल्में उस उबाऊ सरकारी व्यवस्था पर नहीं बनाई जाती, जो कभी-कभी काम काम करती है।
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