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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) High Court Test
created Nov 23rd 2017, 07:56 by SubodhKhare1340667
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'निर्भया फंड' के 90 फीसदी रकम खर्च न होने की खबर पढ़ी तो, तो स्तब्ध रह गई। यह वही निर्भया है, जिसके साथ हुए जघन्य अपराध ने देश को झकझोर कर रख दिया था। लेकिन, यह बेहद शर्मनाक तथा चिंताजनक है कि उनकी याद में महिलाओं की सुरक्षा खातिर बनी योजना पर हमारी सरकार ही गंभीर नहीं है। पिछले 5 वर्षों में इस फंड में 3100 करोड़ जमा किए गए लेकिन, खर्च केवल 300 करोड़ रुपए ही हो सके। यह दुखद है कि हमारे नीति नियंता बेटियों पर हो रहे अत्याचार पर घड़ियालू आँसू तो बहाते हैं लेकिन, योजनाओं के क्रियान्वयन पर केवल कागजी खानापूर्ति में लगे रहते हैं। दरअसल, दूसरी योजनाओं का भी यही हाल है। 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसी योजना में भी लगभग 90 फीसदी फंड रखा ही रह गया। वर्ष 2016-17 में कुल 43 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे लेकन, केवल 5 करोड़ ही खर्चे जा सके। गौरतलब है कि 'निर्भया फंड में दुष्कर्म, घरेलू हिंसा, एसिड एटैक आदि की शिकार महिलाओं की मदद का प्रावधान है, जबकि 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' में गर्भ में ही बच्चियों को मारने से बचाने और उनकी शिक्षा का प्रावधान है। दुर्भाग्य है कि बेटियों की चिंता किसी को भी नहीं है।
जब कई राज्यों की सरकारें और राजनेता नारी सम्मान का हवाला देकर 'पद्मावती' का विरोध करते हैं, जबकि महिला सुरक्षा के लिए बनी योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल चुक हैं। ऐसा लगता है कि नारी को केंद्र में रखकर सिर्फ राजनीति की जाती है और सच्चा हिमायती कोई नहीं है। आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक 2012 में दुष्कर्म के मामलों की संख्या 42,923 थी, जबकि 2015 में यह बढ़ कर 34,651 हो गई। हमारी सरकारें यह कब समझेंगी कि बाल विवाह, गिरता लिंगानुपात, महिला शिक्षा की चरमराई स्थिति की वजह महिलाओं में असुरक्षा की भावना ही है। आगे चलकर यह देश की जीडीपी को भी प्रतिकूलत: प्रभावित करती है। जेंडर गैप इंडेक्स में भारत की गिरती स्थिति से भी इसे समझा जा सकता है। बहरहाल, सरकार का चाहिए कि महिला सुरक्षा संबंधित योजनाओं पर कोरे वादे करना बंद करे और इसी योजनाओं के सही क्रियान्वयन के बारे में सोचे।
जब कई राज्यों की सरकारें और राजनेता नारी सम्मान का हवाला देकर 'पद्मावती' का विरोध करते हैं, जबकि महिला सुरक्षा के लिए बनी योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल चुक हैं। ऐसा लगता है कि नारी को केंद्र में रखकर सिर्फ राजनीति की जाती है और सच्चा हिमायती कोई नहीं है। आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक 2012 में दुष्कर्म के मामलों की संख्या 42,923 थी, जबकि 2015 में यह बढ़ कर 34,651 हो गई। हमारी सरकारें यह कब समझेंगी कि बाल विवाह, गिरता लिंगानुपात, महिला शिक्षा की चरमराई स्थिति की वजह महिलाओं में असुरक्षा की भावना ही है। आगे चलकर यह देश की जीडीपी को भी प्रतिकूलत: प्रभावित करती है। जेंडर गैप इंडेक्स में भारत की गिरती स्थिति से भी इसे समझा जा सकता है। बहरहाल, सरकार का चाहिए कि महिला सुरक्षा संबंधित योजनाओं पर कोरे वादे करना बंद करे और इसी योजनाओं के सही क्रियान्वयन के बारे में सोचे।
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