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UPP CO HINDI TYPING TEST EXERCISE-27-2017 WRITER JASWANT SINGH
created Dec 1st 2017, 01:45 by JASWANTSPECIALCLASSE
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मैं मनुष्य हूं और मुझे मनुष्य व पुरुष जाति में यह जन्म मेरे माता-पिता से प्राप्त हुआ है। मेरे जन्म को लगभग 64 वर्ष हो गये परन्तु आज पहली बार मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि इस बात पर भी विचार करूं कि ईश्वर ने मुझे मनुष्य और वह भी पुरुष योनि में ही क्यों उत्पन्न किया। माता-पिता भी कोई अन्य हो सकते थे। इसका चयन भी परमात्मा ने ही किया। ईश्वर न तो होने वाले माता-पिताओं से सन्तान के बारे में पूछता है और न ही उस जीवात्मा से जिसको वह मनुष्य आदि अनेकानेक योनियों में जन्म देता है। इसका भी अवश्य कोई वैध कारण होना चाहिये और हमें लगता है कि वह अवश्य है। अत: आज का यह लेख इन्ही प्रश्नों के समाधान ढूंढने के लिए लिखा जा रहा है। प्रथम प्रश्न यह है कि परमात्मा ने मुझे मनुष्य ही क्यों बनाया? हमें लगता है कि इस प्रश्न का उत्तर उन पठित लोगों को नहीं मिल सकता जिन्होंने वेद, वैदिक साहित्य वा किसी वेद मत के जानने वाले विद्वान की संगति न की हो या उसके लिखे विचार व पुस्तकादि को न पढ़ा हो। वेद व वैदिक साहित्य इसका क्या उत्तर देते हैं और वह उत्तर युक्ति व तर्क के आधार पर सही है या नहीं, इसका अध्ययन व विचार करने पर इसका सही उत्तर जाना जा सकता है। सबसे पहले तो हम सबको यह जानना चाहिये कि हम केवल शरीर नाम की सत्ता नहीं है अपितु हमारा यह भौतिक शरीर एक सूक्ष्म, एकदेशी, स्वल्प-परिमाण चेतन तत्व जीवात्मा का साधन चा औजार है। इन दोनों, जड़ शरीर व चेतन जीवात्मा, के संयुक्त होकर माता-पिता के द्वारा संसार में आने का नाम जन्म होता है और समय-समय के साथ जन्में शरीर की वृद्धि होकर इसमें बालक, किशोर, युवा, प्रौढ़ व वृद्धावस्थायें आती है। मनुष्य का शरीर जन्म के बाद वृद्धि को प्राप्त होता है परन्तु इसमें, हृदय में, निवास करने वाला जीवात्मा अपने मूल स्वरूप, चेतन, अल्प परिमाण, एक देशी, अल्पज्ञता, राग द्वेष युक्त आदि से युक्त, इस शरीर के भीतर ही विद्यमान रहता है। हमारा यह जीवात्मा पिता, माता व जन्म लेने वाली सन्तान के शरीर के भीतर कहां से व कैसे आता है, इसको जानने के लिए ऊहा से काम लेना होता है। वैदिक धर्म व अनेक मत भी अपनी-अपनी ज्ञान की स्थिति के अनुसार पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मानते हैं। हमारे अपने देश सहित प्राय: सभी देशों में ऐसे ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जिसमें बाल्यकाल में कुछ व किन्हीं बच्चों में पूर्व जन्म की स्मृतियां विद्यमान रहती हैं। महर्षि दयानन्द ने भी सन् 1874 में पुनर्जन्म वा पूर्वजन्म पर एक उपदेश दिया था जिसमें उन्होंने जन्म-मृत्यु का उल्लेख कर पूर्व जन्म को अनेक अकाट्य प्रमाण देकर सिद्ध किया था। इस आधार पर सभी मनुष्यों व प्राणियों का पुनर्जन्म सिद्ध होता है। हम देखते हैं कि सभी प्राणी व मनुष्य वृद्धावस्था के बाद मृत्यु को प्राप्त होते हैं जिसमें शरीर से जीवात्मा पृथक होकर बाहर निकल जाता है। अत्यन्त सूक्ष्म होने के कारण यह कहां जाता है, दिखाई नहीं देता और इसी प्रकार जीवात्मा
