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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH-(MP)
created Jan 13th 2018, 11:31 by AnujGupta1610
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देश भर में कल स्वामी विवेकानंद को याद किया गय और उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प भी किया गया। हमें ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि विवेकानंद जैसा आदर्श पुरुष सदियों में कोई एक ही होता है। जिस दौर में यानी 1863 में 12 जनवरी को जब स्वामी जी का इस धरती पर अवतरण हुआ इस वक्त सचमुच इस देश को ऐसे संत की जरूरत थी जो देश के युवाओं को सही दिशा दिखा सक। विवेकानंद का जीवन आज भी हमारे लिए प्रेरणास्रोत है। मानव सेवा को ही सर्वोच्च मानने वाले विवेकानंद आडंबरों से दूर रहते थे। स्वामी विवेकानंद संत भी थे, गुरु भी और संन्यासी भी। संत के रूप में स्वामी विवेकानंद आध्यात्मिक हैं। गुरु के रूप में वैज्ञानिक हैं। संन्यासी के रूप वेदांती हैं। 11 सितंबर 1893 को संयुक्त राज्य अमरीका के शिकागो शहर में हुए विश्वधर्म सम्मेलन में जब वेदांत-दर्शन की विस्तृत व्याया करके उन्होंने श्रोताओं को अपनी वाणी से मंत्रमुग्ध किया तो भारत की विश्वगुरु के रूप में पहचान पुनर्प्रतिष्ठित हो गई। संत, गुरु, संन्यासी तीनों ही रूपों में स्वामी विवेकानंद ने समाज को संतुलित शिक्षित ओर जागृत किया। सही तो यह है कि उन्होंने सही तो यह है कि उन्होंने शिक्षा, विज्ञान और वेदांत को समन्वित किया। स्वामीजी का शिक्षा-दर्शन सूचना का समुद्र नहीं, मानवीय मूल्यों के मीठे पानी का झरना है। जहां तक स्वामी विवेकानंद का वेदांत-दर्शन है वह दरअसल अध्यात्म का विज्ञान और विज्ञान का अध्यात्म है। त्याग की तूलिका से मानवता के रंग भरे हुए हैं। स्वामी विवेकानंद का वेदांत नव्यरूप में कर्म-विमुखता का नहीं कर्मोन्मुखता का संदेश देता है। इस दृष्टि से वे सभी धर्मों की एकता में विश्वास रखते थे। स्वामी विवेकानंद की मान्यता थी कि मानव-मानव के बीच के बीच बोने वाला तथा दीन दुखियों की सहायता निश्छल-नि:स्वार्थ भाव से करना दरअसल कर्मयोग ही है। स्वामी विवेकानंद के शब्दों में 'अपने अहं भाव को नष्ट करो, फिर समस्त संसार को आत्मरूप देखों। अत: कर्म तो अनिवार्य है, करना ही पड़ेगा। परंतु सर्वोच्च ध्येय को सम्मुख कार्य करो। स्वामी विवेकानंद का वेदांत दरअसल कर्मयोग का पथिक है, मानवता जिसकी मंजिल है।
