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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP)
created Jan 13th 2018, 18:31 by VivekSen1328209
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सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायमूर्तियों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए न्यायपालिका और लोकतंत्र को बचाने की अपील कर सभी को सकते में डाल दिया है। उनके आरोप सामान्य नहीं हैं और न ही यह घटना सामान्य है। भारत के न्यायिक इतिहास में आज तक ऐसा नहीं हुआ और इस असंतोष का इस तरह से समाधान किया जाना चाहिए कि भविष्य में ऐसा न हो। ऊपरी तौर पर वरिष्ठ न्यायाधीशों की आपत्ति उस रोस्टर को लेकर है, जिसक तहत भारत के मुख्य न्यायाधीश यह तय करते हैं कि कौन-सा मुकदमा किस पीठ के पास जाएगा। निश्चित तौर पर लोकतंत्र या कोई भी व्यवस्था कार्य विभाजन पर ही चलती है और उसके लिए एक प्रशासन होता है। यह काम अगर निष्पक्षता से चलता रहे तो कोई दिक्कत नहीं है। जैसे ही मनमानापन और पक्षपात किया जाता है वैसे ही न्याय और निष्पक्षता को आघात पहुंचता है। जजों का आरोप है कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र सारे महत्वपूर्ण मामले स्वयं सुनते हैं और दूसरे जजों को उस काम का मौका नहीं देते। देश की व्यवस्था के लिए अहम मामले भी कुछ खास जजों के पास जाते हैं और यह कार्य वितरण तर्क और विवेक के आधार पर नहीं होता। फिर सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति बीएम लोया की मौत पर दायर जनहित याचिका भी सीजेआई ने मनमाने तरीके से कोर्ट नंबर 10 को भेज दी। चारों जज मेडिकल कॉलेज घोटाले के उस मामले से भी खफा हैं, जिसकी सुनवाई सीजेआई ने एक बेंच विशेष से छीन कर दूसरे को दे दी थी। उनकी चौथी आपत्ति न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी सरकार के साथ निर्धारित सहमति-पत्र के बारे में है जिस पर एक बार पांच जजों की पीठ से सुनवाई हो चुकी है लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने उसे छोटी बेंच को भेज दिया है। यह सारे मामले पहले एक-एक करके उठते रहे हैं, लेकिन गुरुवार को चार वरिष्ठ जजों ने जिस तरह से बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भारत के मुख्य न्यायाधीश की न्यायिक दृष्टि और प्रशासन पर संदेह व्यक्त किया है वह पूरी न्यायिक अंतरात्मा को झकझोर देने वाली घटना है। इस मामले में न्यायपालिका के साथ कार्यपालिका कहीं न कहीं संबंध है और उसे भी सफाई देने और अपने दुरुस्त करने की जरूरत है। अगर देश में न्यायपालिका की खास को बट्टा लगेगा और कानून के राज का क्षय होगा तो भला जनता किस पर भरोसा करेगी?
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