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CPCT Typing Practice- 36 HIGH COURT (GAURAV TIWARI)

created Jan 16th 2018, 04:41 by gauravtiwari1397033


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समय की बरबादी का अर्थ है अपने जीवन को बरबाद करना। जीवन के जो क्षण मनुष्‍य यों ही आलस्‍य तथा उन्‍माद में खो देता है वे फिर कभी लौटकर वापस नहीं आते। जीवन के प्‍याले से क्षणों के जितने बूंद गिर जाते हैं,  उतना ही खाली हो जाता है। प्‍याले की वह रिक्‍तता फिर किसी भी प्रकार भरी नहीं जा सकती है। मनुष्यो जीवन के जितने क्षणों को बरबाद कर देता है, उतने क्षणों में वह जितना काम कर सकता था, उसकी कमी फिर वह किसी प्रकार भी पूरी नहीं कर सकता। जीवन का हर क्षण एक उज्‍जवल भविष्‍य की संभावना लेकर आता है। हर घड़ी एक महान मोड का समय हो सकती है।
    मनुष्य यह निश्‍चय पूर्वक नहीं कह सकता कि जिस समय, जिस क्षण और जिस पल को वह यों ही व्‍यर्थ में खो रहा है वह ही क्षण वह ही समय उसके भाग्‍योदय का समय नहीं है, क्‍या पता जिस क्षण को हम व्‍यर्थ समझ कर बरबाद कर रहे हैं, वह ही हमारे लिए अपनी झोली में सुंदर सौभाग्‍य की सफलता लाया हो, समय की चूंक पश्‍चाताप की हूक बन जाती है। जीवन में कुछ करने की इच्छा रखने वालों को चाहिए कि वे अपने किसी भी ऐसे कर्तव्‍य को भूलकर भी कल पर ना डाले जो आज किया जाना चाहिए। आज के काम के लिए आज का ही दिन निश्चित है और कल के काम के लिए कल का दिन निर्धारित है।      
    बंधक के विमोचन पर निस्‍कासन का दावा। निस्‍कासन का आधार व्‍यापार के लिए वास्‍तविक आवश्‍यकता- दाविया परिषद किराये पर देने के पश्चाकत स्‍वामी/मकान मालिक ने किरायेदार से कर्ज लेकर बंधक पत्र निस्‍पादित कर दिया- वादीगण के अनुसार दाविया परिषद उन्हें  उत्‍तराधिकार में प्राप्‍त हुआ- उन्‍होंने बंधक धन अदा करने के बाद निस्‍कासन का दावा लाया- विचारण न्‍यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि बंधक का विमोचन नहीं हुआ था और वास्‍तविक आवश्‍यकता भी प्रमाणित नहीं हुई- विचारण न्‍यायालय ने अंत:कालीन लाभ 300 रूपए की राशि में प्रतिवादीगण के विरुद्ध डिक्री कर दिया- अपील में प्रथम न्‍यायालय ने अंत:कालीन की डिक्री अपास्त्र‍ करते हुए, वास्‍तविक आवश्‍यकता के आधार पर निस्‍पादन की डिक्री प्रदान की।
     मृतक की आप्राकृतिक मृत्‍यु- मृम्‍यु का कारण सिर की क्षति- घटना से प्रत्‍यर्थी/अभियुक्‍त को जोड़ने के लिए अभियोजन साक्षियों के द्वारा कुछ भी कथित नहीं किया गया- धारा 302 भा.दं.सं. के आधीन अपराध से अभियुक्‍त को जोड़ने के लिए कोई साक्ष्‍य नहीं- मृतक की बंदूक छीनी गई- बंदूक, अभियुक्‍त के बताए जाने पर अभिकथित रूप से बरामद की गई थी- यह सिद्ध करने के लिए कोई साक्ष्‍य नहीं कि, यह मृतक की थी- पुलिस अधिकारी, जिसने बंदूक का अभिगृहण ज्ञापन तैयार किया- प्रथम इत्तिला रिपोर्ट दाखिल किए जाने में अल्‍प दृष्टिगत विलंब- एक अभियोजन साक्षी पलट कर पक्षद्रोही हो गया।
     किसान का सीधापन सरलता उसे सेठ साहूकारों तथा जमीनदारों के हाथों की कठपुतली बना देता है। सेठ, साहूकार जमीनदार मिलकर इनका खूब शोषण करते हैं, दूसरी तरफ मौसम की मार इनकी कमर तोड़ देती है। सूखा या अत्‍यधिक बारिश इनको साहुकारों, जमीनदारों सेठों के आगे अपने खेत घरबार बेचने को मजबूर कर देता है। इनकी स्थिति इतनी दयनीय हो जाती है कि उन्‍ह‍े आत्‍महत्‍या करने पर मजबूर कर देती है। यदि फसल अच्‍छी भी हो जाए तो उन्‍हें फसलों का उचित दाम नहीं मिलता। इस तरह वे उन्‍नति को प्राप्‍त नहीं कर पाते। बड़े किसान फिर भी इस स्थिति से बच जाते हैं।
    इनकी इस दशा के लिए हम काफी हद तक जिम्‍मेदार हैं, पर हमारे द्वारा इस दिशा में कम ही कदम उठाए जा रहे हैं। उनकी अशिक्षा भी उन्‍नति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। अशिक्षित किसानों का साहूकार नाजायज फायदा उठाते हैं। अशिक्षा के कारण सरकार द्वारा दी गई सुविधाएं उन्हेंं नहीं मिल पाती। उनका लाभ दूसरे लोग ले जाते हैं। वे अशिक्षा अज्ञानता के कारण इन लोभियों के हाथ की कठपुतली बने‍ फिरते हैं। जिससे ये निर्धन बन जाते हैं। यही अशिक्षा और निर्धनता इनके पिछड़ेपन का कारण है। आजादी के बाद सरकार के द्वारा किसानों के विकास उन्‍नति के लिए अनेक महत्‍वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।
    दाण्डिक मामले के लंबन का छिपाकर आयुध लाएसेंस अभिप्राप्‍त करना- आवेदक ने आयुध लाएसेंस प्रदान किए जाने के लिए अपने आवेदन में 6 दाण्डिक मामलों के लंबन को प्रकट किया- पुलिस अधी‍क्षक द्वारा ऐसी घोषणा होना सत्‍य होना पायी और आयुध लाएसेंस प्रदान किया गया- तत्‍पश्‍चात यह पाया गया कि एक और मामला लंबित था जो आवेदन में प्रकट नहीं किया गया- अभिनिर्धारित- शेष एक मात्र दाण्डिक मामले के छिपाव द्वारा आयुध लाएसेंस प्राप्‍त करने के आपराधिक मन:स्थिति या आपराधिक आशय के आभाव में छल या कपट मामले में नहीं सका।  
        अपीलार्थी बालक का उपचार पूर्व में मृतक द्वारा किया गया- चूंकि वह काफी समय से आस्‍वस्‍थ था- बालक को फिर से मृतक के पास ले जाया गया जिसने जादू-टोना के आधीन होकर उसका उपचार किया- कोई सुधार नहीं दिखा और बालक की मृत्‍यु प्रात:काल में हो गई- अपीलार्थी ने दूसरे दिन मृतक के मकान में प्रवेश किया और उसपर कुल्‍हाड़ी से हमला किया- अभिनिर्धारित- आकस्मिकता, जो कि मामले को धारा 300 के अपवाद 1 में लाने के लिए महत्‍वपूर्ण घटक है, का आभाव है।

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