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CPCT 15 जनवरी 2017 Shift - 1 Hindi Typing Test (Type this mater in 15 minutes)
created Feb 1st 2018, 10:08 by Dilip Shah
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3.5
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किसी फिल्म के तथ्यों और इतिहास के मामले में अचूक होने की कितने अपेक्षा की जा सकती है, फिर चाहे दावा किया गया हो कि यह वास्तविक घटनाओं पर आधारित है। यह सवाल युवा निर्देशक राजा मेनन की नई फिल्म की सफलता से उठा है। निश्चित ही कुवैत और इराक से डेढ़ लाख से ज्यादा भारतीयों को वापस स्वदेश लाना उल्लेखनीय भारतीय उपलब्धि है और फिल्म बनाए जाने की हकदार है। युद्ध अचानक हुआ था और संकट की मार ज्यादातर निम्न मध्य वर्ग के श्रमिकों पर दिखी, इसलिए कुछ नाटकीयता जायज है। किंतु क्या इसे इतना मिथकीय बना दिया जाना चाहिए था। फिल्म में बताया गया है कि हर सरकारी एजेंसी ने प्रवासी भारतीयों की दुर्दशा पर लापरवाही दिखाई। इसमें दूतावास भी शामिल है, जिसका स्टाफ या तो भाग खड़ा हुआ या (जैसा बगदाद में) उसने पूरी तरह कन्नी काट ली। विदेशी मंत्री ने भी यह कह दिया कि सरकार अस्थिर है और कभी भी गिर सकती है और केवल नौकरशाही ही कुछ कर सकती है, जो स्थायी होती है। यदि भारत वहां फसे भारतीयों को वापस ला सका तो इसके पीछे सिर्फ दो लोग ही थे। इसमें एक तो बेशक हीरो अक्षय कुमार या रंजीत कतियाल था और दूसरे थे कोहली, विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव, जिनका कार्यालय क्लर्क से भी गया-बीता लगता है, जबकि संयुक्त सचिव बहुत ऊंचा पद है, किसी वरिष्ठ राजदूत के समकक्ष कोई बात नहीं। फिल्में उस उबाऊ सरकारी व्यवस्था पर नहीं बनाई जाती, जो कभी-कभी काम करती है। उन्हें संकट, बेबसी, नाटकीयता और अच्छे-बुरे पात्र चाहिए होते हैं, जो मिलकर कहानी बनाते हैं। केवल बॉलीवुड ही काल्पनिक नाटकीयता पैदा करने के लिए वास्तविक घटनाओं को नहीं भुलाता, हॉलीवुड तो और भी बड़े पैमाने पर ऐसा करता है। हाल ही में चर्चित, 'एर्गो' और 'अमेरिकन स्नाइपर' है, इसके अच्छे उदाहरण हैं। पहले भी हमने देखा है कि कैसे कुछ सच्ची घटनाओं को लेकर सफलतापूर्वक भव्य कथाएं रची गई हैं। 'बॉर्डर' इसका एक और उदाहरण है, जिसे 1971 के युद्ध के दौरान लोंगेवाला में हुई जंग पर आधारित माना जाता है। वह बेशक उस युद्ध के इतिहास में उल्लेखनीय अध्याय है, लेकिन उसमें वैसा कुछ नहीं था, जो परदे पर दिखाया गया, कम से कम जमीन पर तो नहीं। लोंगेवाला चौकी पर तैनात भारतीय सैनिकों के छोटे-से दस्ते ने मैजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में मुख्यालय को पाकिस्तानी टैंक हमले की सूचना देने बाद वहां डटे रहकर हमलावरों को यह अहसास कराया कि उनकी संख्या बहुत ज्यादा है।
