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Amit Chaudhary (हर हर महादेव)
created Feb 10th 2018, 16:10 by amit12
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काशी के कण-कण को शंकर की मान्यता है। उसी काशी में कुछ ऐसे स्वयंभू शिवलिंग हैं जिनकी कहानी दो हजार साल से भी अधिक पुरानी है। एक ऐसा ही चमत्कारी शिवलिंग तिलभांडेश्वर महादेव का है। दो हजार वर्ष पूर्व दक्षिण भारत के ऋषि विभांडक यहां आए। वह प्रतिदिन एक तिल बढ़ने वाले इस शिवलिंग को देखकर चकित हो गए। विश्वेश्वर महादेव(काशी विश्वनाथ) मंदिर जाने की जगह उन्होंने यहीं रुक कर वर्षों साधना की। कालांतर में शिवलिंग की प्रकृति और ऋषि के नाम को मिलाकर इनका नामकरण तिलभांडेश्वर किया गया।
शृंग ऋषि के पिता विभांडक ऋषि केदारेश्वर के दर्शन के बाद आदि विश्वेश्वर के मंदिर जाने के लिए बढ़े। मार्ग पर आगे बढ़ते हुए उनकी दृष्टि जैसे ही इस शिलारूपी शिवलिंग पर पड़ी वह ठहर गए। शिवलिंग से एक प्रकाश निकला और आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी में कहा गया कि यह महाशिवलिंग कलियुग में भी तिल तिल प्रतिदिन बढ़ता रहेगा। कलियुग में कोई भी प्राणी यहां दर्शन और शिवलिंग का स्पर्श कर लेगा तो वह मोक्ष का अधिकारी होगा। मंदिर के वर्तमान महंत स्वामी शिवानंद ने बताया कि प्रयाग संगम और दशाश्वमेध में हजार बार स्नान करने का जितना पुण्य है वह इस महाशिवलिंग के एक बार स्पर्श और दर्शन से प्राप्त होता है। तिलभांडेश्वर पर एक कलश जल चढ़ाने से नौग्रहों की बाधा भी दूर हो जाती है। शनि का स्मरण करके तिल चढ़ाने से शनि की बाधा समाप्त हो जाती है। यह शिवलिंग अब भी प्रतिदिन तिल-तिल बढ़ता है। उन्होंने कहा कि विगत तीन सौ वर्षों से इस मंदिर और मठ की सेवा केरल के महात्माओं द्वारा की जा रही है। केरल के महात्मओं का इस स्थान पर आगमन आदि शंकराचार्य के काशी आगमन के समय ही हुआ था।
दोनों बार भागना पड़ा सेना को
इस महाशिवलिंग को तोड़ने की पहली कोशिश सम्राट अशोक के समय में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के दौरान की गई थी। दूसरी कोशिश मुगलों के काल में की गई। दोनों ही बार भौंरों का झुंड आक्रमण करने वाली सेनाओं पर टूट पड़ा और सेना को भागना पड़ा।
शृंग ऋषि के पिता विभांडक ऋषि केदारेश्वर के दर्शन के बाद आदि विश्वेश्वर के मंदिर जाने के लिए बढ़े। मार्ग पर आगे बढ़ते हुए उनकी दृष्टि जैसे ही इस शिलारूपी शिवलिंग पर पड़ी वह ठहर गए। शिवलिंग से एक प्रकाश निकला और आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी में कहा गया कि यह महाशिवलिंग कलियुग में भी तिल तिल प्रतिदिन बढ़ता रहेगा। कलियुग में कोई भी प्राणी यहां दर्शन और शिवलिंग का स्पर्श कर लेगा तो वह मोक्ष का अधिकारी होगा। मंदिर के वर्तमान महंत स्वामी शिवानंद ने बताया कि प्रयाग संगम और दशाश्वमेध में हजार बार स्नान करने का जितना पुण्य है वह इस महाशिवलिंग के एक बार स्पर्श और दर्शन से प्राप्त होता है। तिलभांडेश्वर पर एक कलश जल चढ़ाने से नौग्रहों की बाधा भी दूर हो जाती है। शनि का स्मरण करके तिल चढ़ाने से शनि की बाधा समाप्त हो जाती है। यह शिवलिंग अब भी प्रतिदिन तिल-तिल बढ़ता है। उन्होंने कहा कि विगत तीन सौ वर्षों से इस मंदिर और मठ की सेवा केरल के महात्माओं द्वारा की जा रही है। केरल के महात्मओं का इस स्थान पर आगमन आदि शंकराचार्य के काशी आगमन के समय ही हुआ था।
दोनों बार भागना पड़ा सेना को
इस महाशिवलिंग को तोड़ने की पहली कोशिश सम्राट अशोक के समय में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के दौरान की गई थी। दूसरी कोशिश मुगलों के काल में की गई। दोनों ही बार भौंरों का झुंड आक्रमण करने वाली सेनाओं पर टूट पड़ा और सेना को भागना पड़ा।
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