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सलाह लें ,पर संभल कर संजीव भारती जबलपुर
created Feb 13th 2018, 04:56 by SanjeevBharti
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सलाह लें ,पर संभल कर…..
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. जो की लोगो के समूह के बीच मे रहता है ,इस समूह मे कई तरह के रिश्तो को वो निभाता है ! कुछ रिश्ते निस्स्वार्थ होते है ,जबकि अधिकतर रिश्तो की नीव स्वार्थ पर टिकी होती है! हम जो बनाते हैं, वो अधिकतर आदान प्रदान या यो कहें एक से दूसरे को ,और दूसरे से पहले व्यक्ति को फायदे की बुनियाद पर ही टिके होते हैं! मैं यह नहीं कह रहा की सभी रिश्तो के पीछे स्वार्थ ही होता है, लेकिन हाँ आज की दुनिया में अधिकतर इंसान अपना फायदा देख कर ही बनाते हैं!
दोस्तों ऐसा कई बार होता है ,की हम किसी दुविधा मे फंस जाते हैं और हमे किसी की राय की जरुरत पड़ती है, तब हम अपने आस पास के लोगों से उस बारे मे सलाह मशवरा करते है कि हमे क्या करना चाहिये ,कई बार उनकी राय हमें सही रास्ते का मार्ग दिखाती है तो कभी और ज्यादा हमारे नुक्सान का सबब बन जाती है!
अगर आप माता पिता ,भाई बहन ,सच्चा दोस्त आदि निस्स्वार्थ रिश्तो को , जो की आप को सही राय ही देते हैं, छोड़ दें , तो बाकी अधिकतर समाज के और के लोगो से सलाह लें जरूर ,पर अपना विवेक भी बनाय रखें ! क्योंकि कई बार ऐसे सलाह देने वालो का स्वार्थ भी उनकी सलाह मे छुपा रहता है! इसलिए – सुने सबकी पर माने अपने विवेक और अंतरात्मा की
एक बार एक आदमी अपने छोटे से बालक के साथ एक घने जंगल से जा रहा था! तभी रास्ते मे उस बालक को प्यास लगी , और उसे पानी पिलाने उसका पिता उसे एक नदी पर ले गया , नदी पर पानी पीते पीते अचानक वो बालक पानी मे गिर गया , और डूबने से उसके प्राण निकल गए! वो आदमी बड़ा दुखी हुआ, और उसने सोचा की इस घने जंगल मे इस बालक की अंतिम क्रिया किस प्रकार करूँ ! तभी उसका रोना सुनकर एक गिद्ध , सियार और नदी से एक कछुआ वहा आ गए , और उस आदमी से सहानुभूति व्यक्त करने लगे , आदमी की परेशानी जान कर सब अपनी अपनी सलाह देने लगे!
सियार ने लार टपकाते हुए कहा , ऐसा करो इस बालक के शरीर को इस जंगल मे ही किसी चट्टान के ऊपर छोड़ जाओ, धरती माता इसका उद्धार कर देगी! तभी गिद्ध अपनी ख़ुशी छुपाते हुए बोला, नहीं धरती पर तो इसको जानवर खा जाएँगे, ऐसा करो इसे किसी वृक्ष के ऊपर डाल दो ,ताकि सूरज की गर्मी से इसकी अंतिम गति अच्छी होजाएगी! उन दोनों की बाते सुनकर कछुआ भी अपनी भूख को छुपाते हुआ बोला ,नहीं आप इन दोनों की बातो मे मत आओ, इस बालक की जान पानी मे गई है, इसलिए आप इसे नदी मे ही बहा दो !
और इसके बाद तीनो अपने अपने कहे अनुसार उस आदमी पर जोर डालने लगे ! तब उस आदमी ने अपने विवेक का सहारा लिया और उन तीनो से कहा , तुम तीनो की सहानुभूति भरी सलाह मे मुझे तुम्हारे स्वार्थ की गंध आ रही है, सियार चाहता है की मैं इस बालक के शरीर को ऐसे ही जमीन पर छोड़ दूँ ताकि ये उसे आराम से खा सके, और गिद्ध तुम किसी पेड़ पर इस बालक के शरीर को इसलिए रखने की सलाह दे रहे हो ताकि इस सियार और कछुआ से बच कर आराम से तुम दावत उड़ा सको , और कछुआ तुम नदी के अन्दर रहते हो इसलिए नदी मे अपनी दावत का इंतजाम कर रहे हो ! तुम्हे सलाह देने के लिए धन्यवाद , लेकिन मै इस बालक के शरीर को अग्नि को समर्पित करूँगा , ना की तुम्हारा भोजन बनने दूंगा! यह सुन कर वो तीनो अपना सा मुह लेकर वहा से चले गए!
दोस्तों मै यह नहीं कह रहा हूँ की हर व्यक्ति आपको स्वार्थ भरी सलाह ही देगा , लेकिन आज के इस युग मे हम अगर अपने विवेक की छलनी से किसी सलाह को छान ले तो शायद ज्यादा सही रहेगा ! हो सकता है की आप लोग मेरी बात से पूरी तरह सहमत ना हो ,पर कहीं ना कहीं आज के युग में ये भी तो सच है कि – मेरे नज़दीक रहते है कुछ दोस्त ऐसे ,जो मुझ में ढुंढते संजीव भारती जबलपुर
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. जो की लोगो के समूह के बीच मे रहता है ,इस समूह मे कई तरह के रिश्तो को वो निभाता है ! कुछ रिश्ते निस्स्वार्थ होते है ,जबकि अधिकतर रिश्तो की नीव स्वार्थ पर टिकी होती है! हम जो बनाते हैं, वो अधिकतर आदान प्रदान या यो कहें एक से दूसरे को ,और दूसरे से पहले व्यक्ति को फायदे की बुनियाद पर ही टिके होते हैं! मैं यह नहीं कह रहा की सभी रिश्तो के पीछे स्वार्थ ही होता है, लेकिन हाँ आज की दुनिया में अधिकतर इंसान अपना फायदा देख कर ही बनाते हैं!
दोस्तों ऐसा कई बार होता है ,की हम किसी दुविधा मे फंस जाते हैं और हमे किसी की राय की जरुरत पड़ती है, तब हम अपने आस पास के लोगों से उस बारे मे सलाह मशवरा करते है कि हमे क्या करना चाहिये ,कई बार उनकी राय हमें सही रास्ते का मार्ग दिखाती है तो कभी और ज्यादा हमारे नुक्सान का सबब बन जाती है!
अगर आप माता पिता ,भाई बहन ,सच्चा दोस्त आदि निस्स्वार्थ रिश्तो को , जो की आप को सही राय ही देते हैं, छोड़ दें , तो बाकी अधिकतर समाज के और के लोगो से सलाह लें जरूर ,पर अपना विवेक भी बनाय रखें ! क्योंकि कई बार ऐसे सलाह देने वालो का स्वार्थ भी उनकी सलाह मे छुपा रहता है! इसलिए – सुने सबकी पर माने अपने विवेक और अंतरात्मा की
एक बार एक आदमी अपने छोटे से बालक के साथ एक घने जंगल से जा रहा था! तभी रास्ते मे उस बालक को प्यास लगी , और उसे पानी पिलाने उसका पिता उसे एक नदी पर ले गया , नदी पर पानी पीते पीते अचानक वो बालक पानी मे गिर गया , और डूबने से उसके प्राण निकल गए! वो आदमी बड़ा दुखी हुआ, और उसने सोचा की इस घने जंगल मे इस बालक की अंतिम क्रिया किस प्रकार करूँ ! तभी उसका रोना सुनकर एक गिद्ध , सियार और नदी से एक कछुआ वहा आ गए , और उस आदमी से सहानुभूति व्यक्त करने लगे , आदमी की परेशानी जान कर सब अपनी अपनी सलाह देने लगे!
सियार ने लार टपकाते हुए कहा , ऐसा करो इस बालक के शरीर को इस जंगल मे ही किसी चट्टान के ऊपर छोड़ जाओ, धरती माता इसका उद्धार कर देगी! तभी गिद्ध अपनी ख़ुशी छुपाते हुए बोला, नहीं धरती पर तो इसको जानवर खा जाएँगे, ऐसा करो इसे किसी वृक्ष के ऊपर डाल दो ,ताकि सूरज की गर्मी से इसकी अंतिम गति अच्छी होजाएगी! उन दोनों की बाते सुनकर कछुआ भी अपनी भूख को छुपाते हुआ बोला ,नहीं आप इन दोनों की बातो मे मत आओ, इस बालक की जान पानी मे गई है, इसलिए आप इसे नदी मे ही बहा दो !
और इसके बाद तीनो अपने अपने कहे अनुसार उस आदमी पर जोर डालने लगे ! तब उस आदमी ने अपने विवेक का सहारा लिया और उन तीनो से कहा , तुम तीनो की सहानुभूति भरी सलाह मे मुझे तुम्हारे स्वार्थ की गंध आ रही है, सियार चाहता है की मैं इस बालक के शरीर को ऐसे ही जमीन पर छोड़ दूँ ताकि ये उसे आराम से खा सके, और गिद्ध तुम किसी पेड़ पर इस बालक के शरीर को इसलिए रखने की सलाह दे रहे हो ताकि इस सियार और कछुआ से बच कर आराम से तुम दावत उड़ा सको , और कछुआ तुम नदी के अन्दर रहते हो इसलिए नदी मे अपनी दावत का इंतजाम कर रहे हो ! तुम्हे सलाह देने के लिए धन्यवाद , लेकिन मै इस बालक के शरीर को अग्नि को समर्पित करूँगा , ना की तुम्हारा भोजन बनने दूंगा! यह सुन कर वो तीनो अपना सा मुह लेकर वहा से चले गए!
दोस्तों मै यह नहीं कह रहा हूँ की हर व्यक्ति आपको स्वार्थ भरी सलाह ही देगा , लेकिन आज के इस युग मे हम अगर अपने विवेक की छलनी से किसी सलाह को छान ले तो शायद ज्यादा सही रहेगा ! हो सकता है की आप लोग मेरी बात से पूरी तरह सहमत ना हो ,पर कहीं ना कहीं आज के युग में ये भी तो सच है कि – मेरे नज़दीक रहते है कुछ दोस्त ऐसे ,जो मुझ में ढुंढते संजीव भारती जबलपुर
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