eng
competition

Text Practice Mode

CPCT 12 August 2017 Shift - 1 Hindi Typing (Type this metter in 15 minutes)

created Feb 15th 2018, 14:44 by DilipShah1553307


5


Rating

453 words
71 completed
00:00
भारत की आधी आबादी महिला सशक्तिकरण और मुक्ति की परिभाषा गढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ती। परंतु पुरूष प्रधान समाज की सरजमीन पर आज भी औरतों के हक में बने सरकारी कानूनों को तो सही तरीके से अमल में लाया गया है और ही उन पर सामाजिक अनुमति की मुहर लगी है। बिहार के सुशासन में महिलाओं को पंचायत चुनावों में पचास फीसदी आरक्षण देकर नीतीश कुमार की सरकार ने अच्‍छी पहल की है। लेकिन यदि महिलाओं से संबंधित दहेज निषेध अधिनियम, बाल विवाह अधिनियम आदि संबंधित कानूनों को तत्‍परता से लागू नहीं किया गया तो बिहार का हाल पंजाब जैसा हो जाएगा। कहा जाता है कि पंजाब राज्‍य में हर उस गांव को पुरस्‍कार दिया जाता है जो प्रत्‍येक एक हजार की आबादी पर नौ सौ पचास लड़कियों को जन्‍म देता है। साल 2001 में हुई भारत की जनगणना के मुताबिक बिहार में प्रत्‍येक एक हजार पुरूष जनसंख्‍या पर नौ सौ इक्‍कीस औरतें हैं। बिहार में कई ऐसे परिवार है जो सोचते हैं कि लड़कियों का जन्‍म एक अभिशाप है और उनके पैदा होने से जीवन की कमाई का एक बड़ा हिस्‍सा गायब ही हो जाता है। हाल में ही एक महिला आई पी एस अधिकारी ने टिप्‍पणी की है कि बिहार में गाय को लोग संपत्ति मानते हैं क्‍योंकि वह दूध देगी, बछिया या बछड़ा जनेगी। लेकिन जब एक इंसान के घर कन्‍या पैदा होती है तो मातम पिट जाता है। लोग सोचने लगते हैं कि शादी होने के बाद यह तो जाएगी ही पर साथ में पूरे जीवन की कमाई का एक बड़ा हिस्‍सा भी ले जाएगी। यही कारण है कि दहेज उत्‍पीड़न, मादा भ्रूण हत्‍या, बाल विवाह जैसी कुरीतियों ने समाज को जकड़ा हुआ है। वसंत का मौसम शुरू होते ही बिहार में शादियों का सिलसिला शुरू हो जाता है। लड़की चाहे कितनी भी पढ़ी-लिखी और समझदार क्‍यों हो, लेकिन उसके पिता को अपनी अंटी में मोटी रकम रखकर ही अपनी औकात के मुताबिक दामाद खोजना होगा। इसके लिए बाकायदा रेट तय है। सिपाही या फौजी दूल्‍हें के लिए तीन लाख, स्‍कूल टीचर या क्‍लर्क के चार लाख, इंजीनियर, डाक्‍टर के पंद्रह लाख और यदि लड़का आई एस अथवा आई पी एस जैसी सेवा में हो तो लड़की के बाप का करोड़पति होना जरूरी है। बिहार के लिए यह कोई चोरी वाली बात नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि सरकार इसे नहीं जानती। पर सवाल ये है कि आखिर सामाजिक सुधारों में कोई हाथ क्‍यों नहीं डालना चाहता। सरकार यह मानती है कि दहेज प्रथा हमारे समाज की सबसे बुरी कुरीतियों में से एक है जिसका निराकरण भी समाज के हित में जरूरी है। इसके लिए भारतीय दंड विधान संहिता के प्रावधानों के अलावा विशेष रूप से दहेज निष्‍ोध अधिनियम लागू है।  

saving score / loading statistics ...