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CPCT 13 August 2017 Shift - 1 Hindi Typing (Type this metter in 15 minutes)
created Feb 16th 2018, 14:54 by DilipShah1553307
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शनि देव को न्याय का देवता कहा जाता है जो कि शनि मण्डल में निवास करते हैं। उनका रंग गहरा नीला है और उनके सात वाहन हैं। यह सूर्चदेव की दूसरी पत्नी छाया से जन्में हैं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इनको तीनों लोकों का न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। जब भी कोई जीव पाप, अधर्म, अनीति और अत्याचार करता है तब उसके कर्मो के अनुसार शनि देव उसे दंड देते हैं। पूर्व काल में जब ऋषि अगस्त्य राक्षसों के आतंक से पीडि़त थे तो शनिदेव ने राक्षसों का संहार कर के उन्हें भय मुक्त किया था। जब शनि अपनी माता के गर्भ में थे तब उनकी माता भगवान शंकर की आराधना और तपस्या में इस कदर लीन थीं कि उन्हें खान-पान का भी भान न था। उसी प्रभाव से शनि देव श्याम वर्ण के हुए। शनि का श्याम वर्ण देख कर सूर्यदेव ने छाया पर आरोप लगाया कि शनि उनका पुत्र नहीं है। तभी से शनि अपने पिता से शत्रु भाव रखते हैं। ऐसा कहा जाता है की शनिदेव ने घोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था और तब भगवान शिव ने शनिदेव को एक वरदान दिया था। उस वरदान के अनुसार शनिदेव का स्थान सारे नव ग्रहों में सबसे उत्तम होगा। उनके नाम एवं प्रभाव से मानव ही नहीं, बल्कि देवता गण भी भयभीत रहेंगे। बहुत से लोग शनिदेव को साढ़े साती की वजह से भी जानते हैं। कहते हैं कि हर मनुष्य को तीस साल में एक बार साढ़े साती आती ही है और इस दौरान यदि कोई नया काम शुरू किया जाये तो उसमें असफलता मिलने के आसार ज्यादा होते हैं। परन्तु ऐसा भी नहीं है कि इस समय में आपको केवल दुख ही दुख मिलेंगे। अगर साढ़े साती के समय में अच्छे कर्म किए जाए तो शनि उसका अच्छा पुरस्कार भी प्रदान करते हैं। यह एक ऐसा वक्त होता है जो इंसान को कंगाल तक बना सकता है। इसलिए सभी को अपने कर्मो के प्रति सचेत ही जाना चाहिए और अच्छे कर्म का रास्ता अपना लेना चाहिए ताकि आगर साढ़े साती आ भी जाए तो उसको समाज में केवल सुख ही प्रदान हो। शनि के प्रकोप से कई तरह के रोग भी हो जाते हैं, जैसे गठिया रोग, स्नायु रोग, वात रोग, भगन्दर रोग, पेट के रोग, जांघों के रोग, टीबी, कैंसर आदि। इन रोगों अथवा प्रकोप को शांत करने के लिए लोग बहुत से रत्न भी धारण करते हैं, जिनमें जामुनिया, नीलमणि, नीलिमा, नीलम एवं नीला कटेला अहम हैं। लोग इनमें से एक रत्न चुन कर शनिवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन रत्नों में किसी भी रत्न को शुद्ध मन से धारण करते ही व्यक्ति की तकलीफों में चालीस प्रतिशत तक आराम मिल जाता है
