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inscript typing hindi
created Apr 22nd 2018, 10:04 by MOHITBHARDWAJ1487462
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महोदय, समाज के चतुर्थ वर्ग में आने वाले लोग सहृदय, बुद्धिमान, सर्वशक्ति सम्पन्न व परमार्थी होते हैं। यह वर्ग अपने हृदय की भावना को परिस्थिति के अनुसार दिखाने में पारंगत होते हैं। ये हमेशा अपनी शक्ति का प्रयोग परमार्थ कार्य करने में लगाते हैं। समाज के इन्हें कभी अत्यन्त बुरा, अत्यन्त भला भी कहता है, क्योंकि ये किसी के भले होते हैं, तो वहीं किसी के लिए बुरे भी होते हैं। इनका जीवन परमार्थ युद्ध में बीत जाता है। इस वर्ग में संत, साधु, दार्शनिक से लेकर हर वर्ग के लोग आते हैं, क्योंकि अच्छे-बुरे हर वर्ग में एकाद परमार्थी प्रवृत्ति के अवश्य होते हैं। इनके लिए जीवन एक उपकार है, एक लक्ष्य है।
ये बातें स्पष्ट करती हैं कि जीवन कोई एक परिभाषा में सिमटकर नहीं रहता। ये तमाम परिस्थिति व्यक्ति, विचार, क्रियाकलापों के कारण परिभाषित होती हैं। अब प्रश्न उठता है, जीवन के इस संघर्षपूर्ण सफर में सफल होना है, तो आप कह पायेंगे अतीत से अभी तक और आगे तक वह है, जिसने जिंदगी को दिल से जीने की कोशिश की, वह हार गया। जिसने दिमाग से जिया, वह जीत गया। परंतु जीता हुआ भी जीवन के आनंद से वंचित रहा। वास्तव में जीवन समझ से चलते हुए सफल होना ही है। कहीं दिल से आनंद लेना है, तो दिमाग से कार्यक्रम बनाना है व उस पर चलना आज के परिवेश में शेर बनकर जीना इंसानियत से बचना है। आज मानव इतना भूखा हो गया है कि बस दूसरों के कार्य का अनुचित लाभ उठाकर अपने जीवन में सफल बनने की कोशिश में लगा रहता है।
ये बातें स्पष्ट करती हैं कि जीवन कोई एक परिभाषा में सिमटकर नहीं रहता। ये तमाम परिस्थिति व्यक्ति, विचार, क्रियाकलापों के कारण परिभाषित होती हैं। अब प्रश्न उठता है, जीवन के इस संघर्षपूर्ण सफर में सफल होना है, तो आप कह पायेंगे अतीत से अभी तक और आगे तक वह है, जिसने जिंदगी को दिल से जीने की कोशिश की, वह हार गया। जिसने दिमाग से जिया, वह जीत गया। परंतु जीता हुआ भी जीवन के आनंद से वंचित रहा। वास्तव में जीवन समझ से चलते हुए सफल होना ही है। कहीं दिल से आनंद लेना है, तो दिमाग से कार्यक्रम बनाना है व उस पर चलना आज के परिवेश में शेर बनकर जीना इंसानियत से बचना है। आज मानव इतना भूखा हो गया है कि बस दूसरों के कार्य का अनुचित लाभ उठाकर अपने जीवन में सफल बनने की कोशिश में लगा रहता है।
