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created May 19th 2018, 09:38 by MOHITBHARDWAJ1487462


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महोदय, भारत आज वैज्ञानिक मानवशक्ति के क्रम में संसार के तीसरे स्थान पर आता है, परंतु वैज्ञानिक उपलब्धियाँ उसके अनुरूप नहीं लगती हैं। क्या हमारे वैज्ञानिक कार्य-निष्पादन में सक्षम नहीं है? क्या उनकी योग्यताएँ विकासशील देशों के वैज्ञानिकों की तुलना में कम है। अगर उनके लिए सही सामाजिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक वातावरण नहीं है। आज जब हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं और अपने पिछले 50-55 वर्षों की प्रगति की ओर देखते हैं तो लगता है कि कहीं कुछ चूक हो रही है। ध्यान रहे स्वाधीनता के लगभग 10 वर्षों बाद भारत सरकार ने मार्च 1958 में देश की वैज्ञानिक नीति की आधारशिला रखी थी, जिसका उद्देश्य राष्ट्र की समर्थता के लिए विज्ञान एवं तकनीकी को आधारभूत स्थान देने के साथ-साथ पुरुष अथवा महिलाओं की सर्जनात्मक प्रतिभाओं का प्रोत्साहन करना था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वैज्ञानिक अच्छी सेवा शर्तों वातावरण यहाँ तक वैज्ञानिक नीतियों के निर्धारण में उनकी भागीदारी का भी प्रभाव रखा गया था। किसी भी कार्यक्रम की सफलता के लिए एक निश्चित कार्यप्रणाली तैयार करना आवश्यक होता है। उसके लक्ष्य पूरी तरह परिभाषित होने चाहिए। सभी कार्य चाहे वे मौलिक शोध विकास या अनुपयुक्त शोध से सम्बन्धित हों, मूल लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में ही किया जाना चाहिए। इन कार्यों को सुचारु रूप से क्रियान्वित करने तथा कार्य विभाजन को ध्यान में रखते हुए विभिन्न समितियों का गठन करने की स्थिति को नकारा नहीं जा सकता है। परंतु मात्र समितियोंका गठन करना कार्य को पूर्ण नहीं कर देता। समितियों की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।

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