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ग्रीन मार्केट टाइपिंग सेंटर चकिया राजरूपपुर इलाहाबाद ( इलाहाबाद हाई कोर्ट टाइपिंग )9026827525
created May 21st 2018, 02:37 by satishkumar1601098
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कर्नाटक के चुनाव नतीजे बहुत चौंकाने वाले नहीं हैं। जनता ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ जनादेश दिया है। वर्ष 1985 के बाद से वहां किसी भी राजनीतिक दल की लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी नहीं हुई। अंतिम बार रामकृष्ण हेगड़े की अगुआई में जनता दल की लगातार दूसरी बार सरकार बनी थी। इस तरह राज्य का ट्रेंड कायम रहा, लेकिन इस बार किसी एक पार्टी के पक्ष में जनता ने पूरी तरह विश्वास नहीं जताया है।
मतदाताओं का असमंजस स्पष्ट है। यह चुनाव राष्ट्रीय राजनीति की छाया में लड़ा गया। कुछ लोगों ने तो इसे 2019 के लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल तक बता दिया। इसमें स्थानीय मुद्दे पृष्ठभूमि में चले गए और बीजेपी और कांग्रेस की रस्साकशी ही हावी रही। यह दोनों ही के लिए एक टेस्ट केस बना दिया गया, जिसमें निश्चय ही बीजेपी भारी पड़ी। बीजेपी ऐसे समय में चुनाव मैदान में उतरी जब विपक्ष यह प्रचारित कर रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता उतार पर है। उनकी नीतियों के प्रति जनता में भारी आक्रोश है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी केंद्र सरकार की नीतियों और प्रधानमंत्री के निजी व्यक्तित्व पर ही प्रहार करते रहे। ऐसे में बीजेपी ने जितनी सीटें हासिल की, वे उसकी उपलब्धि कही जाएंगी। यह तय हो गया कि मोदी मैजिक कुछ फीका भले ही पड़ा है, लेकिन बेअसर नहीं हुआ है। लोगों में केंद्र सरकार की नीतियों पर कुल मिलाकर अब भी भरोसा कायम है। इसके साथ ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का बूथ मैनेजमेंट भी कारगर हो रहा है।
दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में वापसी की बन रही संभावनाएं फिर कमजोर पड़ गईं। फिर यह संदेश
गया कि जमीनी राजनीति में बीजेपी उससे बीस है। सबसे बड़ी बात है कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की बनती हुई साख को झटका लगा। गुजरात में बीजेपी को कड़ी टक्कर देकर और कर्नाटक में आक्रामक मुद्रा अपनाकर उन्होंने लोगों में उम्मीद जगाई थी। लेकिन अब उनके नेतृत्व और चुनावी कौशल पर संदेह जताया जा सकता है। बहरहाल कांग्रेस ने मैदान छोड़ा नहीं है।
मतदाताओं का असमंजस स्पष्ट है। यह चुनाव राष्ट्रीय राजनीति की छाया में लड़ा गया। कुछ लोगों ने तो इसे 2019 के लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल तक बता दिया। इसमें स्थानीय मुद्दे पृष्ठभूमि में चले गए और बीजेपी और कांग्रेस की रस्साकशी ही हावी रही। यह दोनों ही के लिए एक टेस्ट केस बना दिया गया, जिसमें निश्चय ही बीजेपी भारी पड़ी। बीजेपी ऐसे समय में चुनाव मैदान में उतरी जब विपक्ष यह प्रचारित कर रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता उतार पर है। उनकी नीतियों के प्रति जनता में भारी आक्रोश है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी केंद्र सरकार की नीतियों और प्रधानमंत्री के निजी व्यक्तित्व पर ही प्रहार करते रहे। ऐसे में बीजेपी ने जितनी सीटें हासिल की, वे उसकी उपलब्धि कही जाएंगी। यह तय हो गया कि मोदी मैजिक कुछ फीका भले ही पड़ा है, लेकिन बेअसर नहीं हुआ है। लोगों में केंद्र सरकार की नीतियों पर कुल मिलाकर अब भी भरोसा कायम है। इसके साथ ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का बूथ मैनेजमेंट भी कारगर हो रहा है।
दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में वापसी की बन रही संभावनाएं फिर कमजोर पड़ गईं। फिर यह संदेश
गया कि जमीनी राजनीति में बीजेपी उससे बीस है। सबसे बड़ी बात है कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की बनती हुई साख को झटका लगा। गुजरात में बीजेपी को कड़ी टक्कर देकर और कर्नाटक में आक्रामक मुद्रा अपनाकर उन्होंने लोगों में उम्मीद जगाई थी। लेकिन अब उनके नेतृत्व और चुनावी कौशल पर संदेह जताया जा सकता है। बहरहाल कांग्रेस ने मैदान छोड़ा नहीं है।
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