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dust_is_dust_girl

created Jun 24th 2018, 12:01 by Abhishek Raj


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होनहार बिरवान के होत चीकने पात इस कहावत का आशय यह है कि वीर, ज्ञानी और गुणी व्यक्ति की झलक उसके बचपन से ही दिखाई देने लगती है। हमारे देश में अनेक महापुरुष हुए है। इन महापुरुषों ने अपने बचपन में ही ऐसे कार्य किए, जिन्हें देखकर उनके महान होने का आभास होने लगा था। ऐसे ही एक वीर, प्रतापी साहसी बालक भरत थे।
भरत हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत के पुत्र थे। राजा दुष्यंत एक बार शिकार खेलते हुए कण्व ऋषि के आश्रम पहुँचे वहाँ शकुन्तला को देखकर वह उस पर मोहित हो गए और शकुन्तला से आश्रम में ही गंधर्व विवाह कर लिया। आश्रम में ऋषि कण्व के होने के कारण राजा दुष्यंत शकुन्तला को एक अँगूठी दे दी जो उनके विवाह की निशानी थी। एक दिन शकुन्तला अपनी सहेलियों के साथ बैठी दुष्यंत के बारे में सोच रही थी, उसी समय दुर्वासा ऋषि आश्रम में गए। शकुन्तला दुष्यंत की याद में इतनी अधिक खोई हुई थी कि उसे दुर्वासा ऋषि के आने का पता ही नहीं चला। शकुन्तला दुष्यंत ने उनका आदर-सत्कार नहीं किया, जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने शकुन्तला को शाप दिया की जिसकी याद में खोए रहने के कारण तूने मेरा सम्मान नहीं किया, वह तुझकों भूल जाएगा।
शकुन्तला की सखियों ने क्रोधित ऋषि से अनजाने में उससे हुए अपराध को क्षमा करने के लिए निवेदन किया। ऋषि ने कहा- मेरे शाप का प्रभाव समाप्त तो नहीं हो सकता किन्तु दुष्यंत द्वारा दी गई अँगूठी को दिखाने से उन्हें अपने विवाह का स्मरण हो जाएगा।
कण्व ऋषि जब आश्रम वापस आये तो उन्हें शकुन्तला के गंधर्व विवाह का समाचार मिला। उन्होंने एक गृहस्थ की भाँति अपनी पुत्री को पति के पास जाने के लिए विदा किया। शकुन्तला के पास राजा द्वारा गी गयी अँगूठी खो गई थी। शाप के प्रभाव से राजा दुष्यंत अपने विवाह की घटना भूल चुके थे।  
 

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