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created Jul 19th 2018, 13:35 by NavneetKumar1637684


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पिछले दिनों अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने कम दाखिले वाले तकनीकी शिक्षा संस्थानों की स्वैच्छिक रूप से बंद करने की पहल को प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया था। आज हमारे देश में तकनीकी शिक्षा विभिन्न विसंगतियों के चलते दयनीय स्थिति में है। पिछले तीन-चार वर्षों से इंजीनियरिंग तथा मैनेजमेंट क़ॉलेजों की सीटें नहीं भर रही हैं। सवाल है कि इंजीनियरिंग तथा मैनेजमेंट की डिग्रीयों से छात्रों का मोहभंग क्यों हुआ? अगर प्रतियोगिता के माध्यम से इंजीनियरिंद की डिग्री प्राप्त करने की बात छोड़ दें, तो वर्ष 2000 तक छात्र् दक्षिण के निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में इंजीनियरिंग पढ़ने जाते थे। उस समय इंजीनियरिंग में प्रवेश कराने वाले दलालों ने भारी मुनाफा कमाया। 1997 में दक्षिण की तर्ज पर देश विभिन्न राज्यों में निजी इंजीनियरिंग कॉलेज खुलने शुरू हुए। हालांकि उस समय इनकी संख्या अधिक नहीं थी।  2001 के आसृ-पास निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या बढ़ने लगी और 2006 से 2010 तक कुकरमुत्तों की तरह इंजीनियरिंग तथा मैनेजेमेंट कॉलेज खुले। ये कॉलेज कब शिक्षा की दुकान बन गये पता नहीं चला। आज छात्र मिलने के कारण अनेक कॉलेज बंद होने की कगार पर  हैं। जरूरत से ज्यादा कॉलेज होने के साथ कुछ अन्य कारण भी हैं, जिनके चलते छात्रों का इन डिग्रीयों से मोह भंग हुआ है। ज्यादातर निजी कॉलेजों से डिग्रीयां लेने के बाद छात्रों को नौकरी के लिए पाप़ड़ बेलने पड़ते हैं। किसी तरह नौकरी मिल जाती है, तो उसे बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। लाखों रूपये खर्च करने के बाद भी जब डिग्री के अनुसार अच्छा वेतन नहीं मिलता, तो वे खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं। इसी वजह से आज छात्रों और अभिभावकों का मोह भंग हुआ है। असल में निजी कॉलेजों के मालिकों को अपने संसाधनों से कॉलेज का खर्च चलाना पड़ता है।  

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