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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || For CPCT || आकाश खरे

created Aug 6th 2018, 14:01 by akash khare


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सर्वोच्‍च नयायालय के आंतरिक तूफान का यकायक सार्वजनिक होना असाधारण अकल्‍पनीय घटना थी। अटार्नी जनरल अत्‍यन्‍त आशावादी हैं। उन्‍होंने हालात को चाय के कप में तूफान बताते हुए इसके अतिशीघ्र सामान्‍य होने की सम्‍भावना जताई। वास्‍तविकता यह है कि व्‍यापक विश्‍लेषण की आवश्‍कता है क्‍योंकि स्थिति सामान्‍य होने का भ्रम फैलाने से और व्‍यापक क्षति होने की आशंका है।
       संविधान की धारा 124/217 के अन्‍तर्गत सर्वोच्‍च/उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों की नियुक्ति केन्‍द्र सरकार द्वारा किये जाने का प्रावधान है और कई दशकों तक, इसी आधार पर न्‍यायाधीशों की नियुक्तियां हो रही थी परन्‍तु 1993 में, एडवोकेट ऑन रिकार्ड बनाम केन्‍द्र सरकार के निर्णय द्वारा उच्‍च न्‍यायालय उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों का चयन नियुक्ति के समस्‍त अधिकार सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने अपने हाथ में ले लिये तथा कॉलेज का गठन कर दिया, जिसका संविधान में कहीं उल्‍लेख नहीं है।  
    न्‍यायपालिका की सवतंत्रता और राजनीतिक हस्‍तक्षेप से बचने के लिए यह व्‍यवस्‍थ प्रारम्‍भ में ठीक थी परन्‍तु धीरे-धीरे इस व्‍यवस्‍था में कई दोष गए। मौजूदा केन्‍द्र सरकार ने न्‍यायाधीशों की नियुक्तियों आदि के संदर्भ में संवैधानिक द्वारा कॉलेजियम व्‍यवस्‍था पर अंकुश लगाने की कोशिश की। जहां हर विषय पर राजनीतिक दलों में गहरे मतभेद दिखते हैं परन्‍तु संविधान के इस 120वें संशोधन को सर्वसम्‍मति से पारित किया गया। दुर्भाग्‍य से पूरे संवैधानिक संशोधन को सर्वोच्‍च न्‍यायालय की न्‍यायमूर्ति केहर की पांच न्‍यायाधीशों की संविधान पीठ ने असंवैधानिक घोषित कर दिया।  

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