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ज्ञान दृष्टि (मंंगल फॉट)

created Aug 9th 2018, 05:04 by arpanshukla


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ज्ञान दृष्टि से मनुष्य ज्ञान जगत से संबंधित समस्त बातो का अनुभव कर सकता है। उसी तरह अज्ञान दृष्टि से अज्ञान के जगत का अनुभव कर लेता है। जिन दो आंखो से हम परिचित है, जिन दो आखो से हम देखते है जिन दो चक्षुओं को हम जानते हैं वे अज्ञानता के चक्षु हैं। अज्ञानता की स्थिति मे ये दो आंखे कम करती है और ज्ञान की दृष्टि बंद रहती है। जब ज्ञान दृष्टि खुल जाती है तब अज्ञान दृष्टि बंद हो जाती है। जिस तरह अज्ञान दृष्टि बाहर की ओर काम करती है, उसी प्रकार ज्ञान दृष्टि भीतर की ओर काम करती है। दोनो में क्रिया एक ही तरह हैं। ज्ञान और विज्ञान परिचित आंखो और अद्रष्य आखों का एक भाव भी है। एक सम स्थिति भी हैं। जहां दोनों नहीं होते है, इन दोनो से अलग तीसरी आंख है जिसे त्रिनेत्र भी कहा जाता है। त्रिनेत्र को दिव्य दृष्टि कह सकते है जो ज्ञानमय दृष्टि हैं। अज्ञानमय दृष्टि  का जिस तरह का उत्तराधिकारी मनुष्य है, उसी प्रकार से इस तीसरी आंख का भी अधिकारी मनुष्य होता है। त्रिनेत्र शक्ति का स्थान है। ध्यान साधना से त्रिनेत्र के खुल जाने से अंधकार हमेशा के लिए खत्म हो जाता है।  
दृश्य जगत से अदृश्य जगत के बोध के लिए और सूक्ष्म जगत की सूक्ष्म गतिविधियों में रहनें के लिए त्रिनेत्र का विशेश महत्व है। दिव्य भाव मे आत्ममय होने और भगवत अनुग्रह के लिए आंतरिक-ज्ञानमय शक्ति आवश्यक है, जो त्रिनेत्र पर ध्यान केंद्रित होने पर ही संभव है। त्रिनेत्र पर ध्यान केद्रित होने पर परम सत्ता के साथ साक्षत्कार होता है। इस पूर्णता को प्राप्त  कर लेने पर तीसरी आंखे खोल लेने बाद- ज्ञान-शक्ति मनुष्य के अधिकार मे होती है। स्पष्ट है आंतरिक त्रिनेत्र के खुलने के बाद व्यक्ति संसार और परम चेतन तत्व की अच्छी तरह से अनुभूति करने लगता है। कहने का आशय यह है कि आंतरिक नेत्र यानी त्रिनेत्र के खुलने के बाद अंधकार स्वतः खत्म होत जाता है।
 

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