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created Aug 10th 2018, 04:14 by Buddha academy
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अच्छा हुआ कि मद्रास हाईकोर्ट ने भारतीय राजनीति के दिग्गज मुत्तूअल करुणानिधि को चेन्नई के मरीना समुद्र तट पर दफनाए जाने की इजाजत दे दी और तमिलनाडु अप्रिय घटनाओं से बच गया। राज्य की अन्नाद्रमुक सरकार नहीं चाहती थी कि करुणानिधि को वहां दफनाया जाए, जहां उनके नेता सी. अन्नादुराई और सहयोगी और प्रतिद्वंद्वी मरुदूर गोपालन रामचंद्रन और जे. जयललिता को दफनाया गया है। राज्य सरकार मौजूदा और पूर्व मुख्यमंत्री के अंतर की दलील देकर कह रही थी कि यह प्रोटोकाल तो स्वयं करुणानिधि ने तय किए थे।
बात सिर्फ पूर्व और मौजूदा मुख्यमंत्री होने की ही नहीं उस विचारधारा की भी थी, जिसका प्रतिनिधित्व करुणानिधि करते थे। सरकार उन्हें सरदार पटेल रोड पर गांधी मंडपम के पास जगह देने को तैयार थी, जहां गांधीवादी आंदोलन के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सी. राजगोपालाचारी, के. कामराज और भक्तवत्सलम की समाधियां हैं। जबकि द्रमुक कार्यकर्ता चाहते थे कि उन्हें वहां दफनाया जाए जहां ब्राह्मणवाद, आस्तिकता और उत्तर भारतीय प्रभुत्व के विरोधी नेता अन्नादुराई दफनाए गए थे। हालांकि इस कतार के सबसे बड़े नेता और सबके गुरु रामास्वामी नाइकर को वहां नहीं दफनाया गया था। विवाद में संविधान में दिए गए समानता के अधिकार के अनुच्छेद 14 की मदद की गई, जो कि अपने में बेमतलब था। असली सवाल उस प्रतीकात्मकता का है, जिसे द्रविड आंदोलन की विरासत के तौर पर द्रमुक के नेता और उनके बेटे एमके स्तालिन जिंदा रखना चाहते हैं। हालांकि मूर्ति पूजा, अंधविश्वास और पाखंड विरोधी उस आंदोलन की विरासत में दफनाए जाने की जगह को लेकर कोई खास आग्रह होना नहीं चाहिए था।
बात सिर्फ पूर्व और मौजूदा मुख्यमंत्री होने की ही नहीं उस विचारधारा की भी थी, जिसका प्रतिनिधित्व करुणानिधि करते थे। सरकार उन्हें सरदार पटेल रोड पर गांधी मंडपम के पास जगह देने को तैयार थी, जहां गांधीवादी आंदोलन के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सी. राजगोपालाचारी, के. कामराज और भक्तवत्सलम की समाधियां हैं। जबकि द्रमुक कार्यकर्ता चाहते थे कि उन्हें वहां दफनाया जाए जहां ब्राह्मणवाद, आस्तिकता और उत्तर भारतीय प्रभुत्व के विरोधी नेता अन्नादुराई दफनाए गए थे। हालांकि इस कतार के सबसे बड़े नेता और सबके गुरु रामास्वामी नाइकर को वहां नहीं दफनाया गया था। विवाद में संविधान में दिए गए समानता के अधिकार के अनुच्छेद 14 की मदद की गई, जो कि अपने में बेमतलब था। असली सवाल उस प्रतीकात्मकता का है, जिसे द्रविड आंदोलन की विरासत के तौर पर द्रमुक के नेता और उनके बेटे एमके स्तालिन जिंदा रखना चाहते हैं। हालांकि मूर्ति पूजा, अंधविश्वास और पाखंड विरोधी उस आंदोलन की विरासत में दफनाए जाने की जगह को लेकर कोई खास आग्रह होना नहीं चाहिए था।
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