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created Aug 13th 2018, 04:16 by SubodhKhare1340667
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ईरान पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रतिबंधों का पहला दौर इस हफ्ते अमल में आ गया। अभी तक इसमें भारत के लिए राहत के कोई संकेत नहीं दिखे हैं। अमेरिकी कांग्रेस ने एक ऐसा कानून बनाया है, जिसमें भारत को रूस के साथ रक्ष समझौतों के मामले में रियायत दी गई है, लेकिन यह छूट सशर्त हे, जो एक तय अवधि से जुड़ी हुई है। भारतीय मीडिया छूट से जुड़े कानून को तो उल्लेख कर रहा है, लेकिन उसमें जुड़ी शर्तों पर मौन है।
भारत लंबे अरसे से रूसी हथियारों का बड़ा खरीददार रहा है और चीन के बाद ईरानी तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है। ऐसे में अमेरिकी प्रतिबंधों से भारत के काफी प्रभावित होने की आशंका है। ऊर्जा एवं रक्षा जैसे मोर्चों को लेकर नई दिल्ली पर दोहरा दबाव डालकर वाशिंगटन ने द्विपक्षीय रिश्तों में तल्खी बढ़ाने वाला काम किया है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि अमेरिका के अनुरूप विदेश नीति अपनाना भारत के लिए कितना जोखिम भरा हो सकता है। किसी देश पर दंडात्मक प्रतिबंध लगाने के दायरे का अमेरिका ने दूसरे देशों तक विस्तार कर, उनके साथ व्यापारिक एवं वित्तीय गतिविधियां बंद करने की धमकी दी है। ऐसे प्रतिबंध अंतरराष्ट्रीय कानूनों का मखौल उड़ाते हैं। फिर भी अमेरिका अपनी ताकत का इस्तेमाल ऐसे करता है, जिससे उसकी घरेलू कार्रवाई वैश्विक रूप ले लेती है। अमेरिकी डॉलर मुद्रा रूप में ऐसा ईंधन है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की गाड़ी को चलाता है। इससे अमेरिकी प्रतिबंध बेहद प्रभावी बन जाते हैं। दुनिया में बैंकिंग से लेकर तेल के मामले में होने वाले बड़े लेन-देन अमेरिका डॉलर में ही हाते हैं। इसमें कोई संदहे नहीं कि ये प्रतिबंध ट्रंप के दिमाग की सनक हैं।
भारत लंबे अरसे से रूसी हथियारों का बड़ा खरीददार रहा है और चीन के बाद ईरानी तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है। ऐसे में अमेरिकी प्रतिबंधों से भारत के काफी प्रभावित होने की आशंका है। ऊर्जा एवं रक्षा जैसे मोर्चों को लेकर नई दिल्ली पर दोहरा दबाव डालकर वाशिंगटन ने द्विपक्षीय रिश्तों में तल्खी बढ़ाने वाला काम किया है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि अमेरिका के अनुरूप विदेश नीति अपनाना भारत के लिए कितना जोखिम भरा हो सकता है। किसी देश पर दंडात्मक प्रतिबंध लगाने के दायरे का अमेरिका ने दूसरे देशों तक विस्तार कर, उनके साथ व्यापारिक एवं वित्तीय गतिविधियां बंद करने की धमकी दी है। ऐसे प्रतिबंध अंतरराष्ट्रीय कानूनों का मखौल उड़ाते हैं। फिर भी अमेरिका अपनी ताकत का इस्तेमाल ऐसे करता है, जिससे उसकी घरेलू कार्रवाई वैश्विक रूप ले लेती है। अमेरिकी डॉलर मुद्रा रूप में ऐसा ईंधन है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की गाड़ी को चलाता है। इससे अमेरिकी प्रतिबंध बेहद प्रभावी बन जाते हैं। दुनिया में बैंकिंग से लेकर तेल के मामले में होने वाले बड़े लेन-देन अमेरिका डॉलर में ही हाते हैं। इसमें कोई संदहे नहीं कि ये प्रतिबंध ट्रंप के दिमाग की सनक हैं।
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