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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || हमारे मैटर Hindi Remington-GAIL-Keybord पर आधारित है, अन्‍य फॉन्‍ट पर करने पर आधे शब्‍द रेड होंगे।

created Sep 12th 2018, 11:35 by


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एक आर्थिक सर्वेक्षण, जिसमें नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्‍चर एण्‍ड रूरल डेवलपमेंट भी शामिल है, से पता चलता है कि हमारे देश में ग्रामीणों की आैसत आय में कृषि और पशुपालन का योगदान मात्र 23 प्रतिशत है। यहां तक कि उन ग्रामीण घरों में जहां कम से कम एक व्‍यक्ति कृषि-कर्म में रत है, और जिसका वार्षिक उत्‍पादन पांच हजार रुपये है, वहां भी औसत आय का तैतालीस प्रतिशत जरिया कृषि और पशुपालन ही है। इससे एक बात स्‍पष्‍ट हो जाती है कि ग्रामीण भारत को केवल कृषि से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। हमारी दो-तिहाई जनसंख्‍या गांवों में रहती है, जबकि सकल घरेलू उत्‍पाद में कृषि का योगदान केवल 17 प्रतिशत ही है। सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण इलाकों में से केवल 47.6 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर करते हैं, और उनकी आय का 43.1 प्रतिशत खेतों से आता है।
    ग्रामीण क्षेत्रों की मुख्‍य समस्‍या, प्राप्ति और रोजगार की दृष्टि से कृषि पर बहुत अधिक निर्भर रहना है। वहां कुछ ऐसे निर्माण संयंत्रों की आवश्‍यकता है, जो कृषि उत्‍पादों का प्रसंस्‍करण करके उनका सही मूल्‍य दिलवा सकें। सातवें और आठवें दशक में हुए चीन के औद्योगीकरण का उद्देश्‍य टाऊनशिप और ग्रामीण उद्यमों को बढ़ावा देना था। वहां गांव-गांव में छोटे-छोटे उद्योग चल रहे हैं।
    इस अनुभव का भारत में भी अनुसरण किया जा सकता है। इसे विस्‍तृत करते हुए सॉफ्टवेयर और व्‍यापार में आऊटसोर्सिंग की सेवाओं तक ले जा सकता है। तमिलनाडु और गुजरात के कुछ गाँव सफलता की कहानी कहते हैं। परन्‍तु इनकी संख्‍या बहुत कम है। ग्रामीण उद्यमिता के विकास के लिए बिजली की अबाध्‍य सुविधा, सुरक्षित सड़कें, इंटरनेट संपर्क और शिक्षा के स्‍तर को ठीक करने की जरूरत है। अभी तक गैर कृषि कर्म के रूप में ईंट भट्टों, पत्‍थर-खदानों, खेतों में मरम्‍मत, निर्माण आदि में ग्रामीण लोग काम करते हैं। परन्‍तु सुविधाएं बढ़ने के साथ उन्‍हें आय के कई स्रोत मिल जाएंगे। खेती के अलावा अन्‍य रोजगारों के उत्‍पन्‍न होने से अंतत: खेती करने वालों को ही लाभ होगा। अन्‍य रोजगार मिलने से कुछ लोग कृषि-कर्म को छोड़ देंगे। ल‍ेकिन कृषि में वास्‍तविक रूचि रखने वाले लोग, इसमें निवेश बढ़ाकर उत्‍पादकता में वृद्धि कर सकेंगे। अगर ऐसा हो सके, तो कृषि का काम मजबूरी का पेशा नहीं रह जाएगा। इसके बाद ही कृषि, विशेषज्ञता आधारित होकर लाभ का व्‍यवसाय बन पाएगी। यही भारतीय कृषि के पुनरुत्‍थान की दिशा है।

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