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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH-(MP):- SONU AHIRWAR

created Oct 15th 2018, 04:09 by Sonu Ahirwar


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मनुष्‍य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहकर वह अपना जीवन निर्वाह करता है। ईश्‍वर ने इस सुन्‍दर संसार की रचना मनुष्‍य के लिए ही की है। मनुष्‍य एक चिन्‍तनशील प्राणी है। वह निरन्‍तर आगे बढ़ने की ही अभिलाषा रखता है। सभी प्राणियों के जीवन का लक्ष्‍य सफलता एवं अानन्‍द प्राप्‍त ही होता है। जो कुछ भी कार्य वह करता है, वह अपनी सुख-शान्ति के लिए ही करता है। वह अपने कर्मों द्वारा अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहता है। इसी कारण मनुष्‍य दृढ़ निश्‍चय, लगन साहस से सदैव अपने कार्य में प्रयासरत रहता है। मनुष्‍य का जीवन एक ऐसी धारा है जिसे लक्ष्‍य निर्धारण द्वारा उचित दिशा की तरफ मोड़ा जा सकता है। लक्ष्‍यहीन जीवन पशु तुल्‍य है। व्‍यक्ति बिना तप, दान, धर्म के पृथ्‍वी पर अपना जीवन भार स्‍वरूप निर्वाह करता है। व्‍यक्ति जो भी व्‍यवसाय करता है, जैसे- खेतीबाड़ी, व्‍यापार, नेतागिरी, डॉक्‍टरी, वकालत, इंजीनियरी आदि इन सबका उद्देश्‍य धन संचय कर जीवन की आवश्‍यकताओं को पूरा कर सुख-शान्ति पाना ही है। अपने लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए निरन्‍तर साधन कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। महर्षि देवव्‍यास ने ज्ञान को पवित्र बताया है। ज्ञान रूपी कसौटी पर मानव रूपी कुन्‍दन खरा साबित होता है। मेरी अभिलाषा आदर्श अध्‍यापक बनने की है। शिक्षण काल से ही मेरी रुचि पढ़ने-पढाने में रही है। मेरे गुरुजी ने मुझसे एक दिन कहा था कि अध्‍यापक का कार्य आदर्श एवं पवित्र कार्य है इसे अपनाना चाहिए और छात्रों का भला करना चाहिए। उसी दिन मैंने संकल्‍प कर लिया कि मैं अध्‍यापक बन कर समाज की सेवा करूँगा। अत: मुझे कड़ी मेहनत करनी होगी। अध्‍यापक का जीवन पवित्र होता है। कौन कहता है? शिक्षा का स्‍तर उठाने के लिए अध्‍यापक को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। केवल जीवन-निर्वाह के लिए अध्‍यापक बनना ठीक नहीं है।  

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