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created Dec 6th 2018, 10:10 by BeingTopper
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बीसवीं सदी के पूर्वाध तक सरकारों का काम कानून व्यवस्था बनाए रखाना एवं देश की सुरक्षा करना माना जाता था। इसीलिए भरत में अंग्रेजों के शासनकाल में दो ही प्रमुख सेवाएं थी। एक तो भाारतीयनागरिक सेवा तथा दूसरी भारतीय सैन्य सेवाएं। ऐसा नहीं कि उन दिनों निर्माण कार्य नहीं हुए किन्तु शासन होने के कारण आम जनता की सरकार से बहुत ज्यादा अपक्षएं नहीं थी। प्रशासन की जवाबदेही भी भरत की जना के प्रति न होकर इंग्लैण्ड के सम्राट तथा उसके भरत में प्रतिनिधि वायसराय के प्रति थी। उस समय प्रशासन में जटिलता नहीं थी। आजादी के बाद लोककल्याणकारी राज्य के रूप में सरकार की जिम्मेदारी में आर्थक विकास के साथ सामाजिक न्याय भी सरकार के कर्तव्यों में शामिल हो गया। शासन व प्रशासन का लक्ष्य सुशासन होता हैक्। पहले उत्तम कनून एवं व्यवस्था बनएा राखना सुशासन कहलाता था। अब सुुशासन के अंतर्गत न केवल कानून एवं व्यवस्था बल्कि आर्थिक विकास लोककल्याण एवं सामाजिक न्याय के निर्धारित मानदण्डों को पूरा करना भी शामिल हो गया है।
सुशाासनकी दिशा में प्रशासनिक सुधार एवं निरंतर प्रक्रिया है। भत में अंग्रेजों के समय भी प्रशासनिक सुधार पर समय समय पर विचार होता रहा है। आजादी के बाद तो जनपेक्षी शासन की वजह से इस पर विचार होते रहे हैं। 1947 में गोपाल स्वामी आयंगर न प्रशासन में सुधर तथा पुर्र्गठन के लिए अपना प्रतिवेदन दिया था। योजना आयोग द्वारा प्रशासकीय सुधर हेतु गठित गोरावला समिति ने अपने सूझाव दिए। तत्पश्चात एप्पल बाई समिति ने अपने सूझाव दिए। तत्पश्चात इसकी सिफारिश पर ही 1948 में नई दिल्ली में भारतीय लोक प्रशासन संस्था की स्थापना हुई। इन 53 वर्षो में भारतीय लोक प्रशासन संस्रूथान भारत के सबसे अधिक प्रतिष्ठित एवं क्रियाशील अध्ययन संस्थान के रूप में उभरा है। इसकी न केवल हर राज्य में शाखाएं है। 1966 में मोरारजी देशसई की अध्यक्षता मेें भारत के प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग की स्थापना की गयी। इस आयोग ने प्रशासनिक सुधार के गहरे एवं विस्तार से अध्ययन हेेतु 20 अध्ययन दल एवं 13 कार्यकारी समूह तथा एवं काय्रदल का गठन किया।द्य आयोग ने अपने 4 वर्ष के कार्यकाल में 20 प्रतिवेदन दिए, जिनमें लगभब 580 से अधिक अनुशंसाए की गयी थी। प्रथ्राम आयोग द्वारा इतने विशाल पैमाने पर अध्ययन करके अनुशंसएाएं किये जाने के बाद भी 19802 तक अलग अलग विषयों पर विचार करने के लिए दर्जग्नों आयोग एवं समितियाांगठित की जाती रही।
सुशाासनकी दिशा में प्रशासनिक सुधार एवं निरंतर प्रक्रिया है। भत में अंग्रेजों के समय भी प्रशासनिक सुधार पर समय समय पर विचार होता रहा है। आजादी के बाद तो जनपेक्षी शासन की वजह से इस पर विचार होते रहे हैं। 1947 में गोपाल स्वामी आयंगर न प्रशासन में सुधर तथा पुर्र्गठन के लिए अपना प्रतिवेदन दिया था। योजना आयोग द्वारा प्रशासकीय सुधर हेतु गठित गोरावला समिति ने अपने सूझाव दिए। तत्पश्चात एप्पल बाई समिति ने अपने सूझाव दिए। तत्पश्चात इसकी सिफारिश पर ही 1948 में नई दिल्ली में भारतीय लोक प्रशासन संस्था की स्थापना हुई। इन 53 वर्षो में भारतीय लोक प्रशासन संस्रूथान भारत के सबसे अधिक प्रतिष्ठित एवं क्रियाशील अध्ययन संस्थान के रूप में उभरा है। इसकी न केवल हर राज्य में शाखाएं है। 1966 में मोरारजी देशसई की अध्यक्षता मेें भारत के प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग की स्थापना की गयी। इस आयोग ने प्रशासनिक सुधार के गहरे एवं विस्तार से अध्ययन हेेतु 20 अध्ययन दल एवं 13 कार्यकारी समूह तथा एवं काय्रदल का गठन किया।द्य आयोग ने अपने 4 वर्ष के कार्यकाल में 20 प्रतिवेदन दिए, जिनमें लगभब 580 से अधिक अनुशंसाए की गयी थी। प्रथ्राम आयोग द्वारा इतने विशाल पैमाने पर अध्ययन करके अनुशंसएाएं किये जाने के बाद भी 19802 तक अलग अलग विषयों पर विचार करने के लिए दर्जग्नों आयोग एवं समितियाांगठित की जाती रही।
