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VSCTI HINDI TYPING FOR HIGH COURT 06/12/2018
created Dec 6th 2018, 12:10 by bhavna sharma
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फेरा के अधिकारियों ने 15 जनवरी, 1990 को याची के कारबार परिसर पर छापा मारा क्योंकि उन्हें संदेह था कि याची फेरा के उपबंधों का उल्लंघन करके अवैध धंधे में लिप्त है। 15 और 16 जनवरी, 1990 को उसने फेरा के अधिकारियों के समक्ष अपने दोष को स्वीकार किया। लेकिन बाद में मुकर गया। याची के कलकत्ता उच्च न्यायालय में याचिका फाइल करके निरोध आदेश के रोकने का निवेदन किया। याची के पक्ष में रोक आदेश जारी किया गया लेकिन 9 नवम्बर, 1990 को रोक आदेश निष्प्रभावी कर दिया गया। फिर भी 28 फरवरी, 1990 को पारित निरोध आदेश 28 मार्च, 2000 तक तामील नहीं किया गया। याची ने उपरोक्त 28 फरवरी, 1990 को पारित निरोध आदेश की उच्च न्यायालय में चुनौती दी। अभिनिर्धारित - आरंभ में यह कहा जा सकता है कि प्रत्यर्क्षी ने कोफेपोसा की धारा 7 के अधीन कोई कार्रवाई आरंभ नहीं की थी। जब यह पहलू ध्यान में लाया गया तो श्री सर्वजीत शर्मा ने उचित रूप से यह स्वीकार किया कि काेफेपोसा की धारा 7 के उपबंधों का अवलंब नहीं लिया गया था। उसने भारत सरकार के उपसचिव से मिले पत्र को अभिलेख पर प्रस्तुत किया। तारीख 2 मई, 2000 के इस पत्र के परिशीलन से यह दर्शित होता है कि याची/निरूद्ध व्यक्ति के विरूद्ध दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82/83 के अधीन कार्यवाहियां करने के लिए कोफेपोसा की धारा 7 के अधीन कोई कार्रवाई आरंभ नहीं की गई थी। भारत सरकार के उपसचिव की यह स्वीकृति इस तथ्य का स्पष्ट संकेत है कि याची पर निरोध आदेश की तामीजी के लिए कोफेपोसा प्राधिकारियों ने कोई गंभीर कदम नहीं उठाए थे। अन्यथा भी प्रत्यर्थी द्वारा याचिका में अभिवचित तथ्यों के प्रति प्रति-शपथपत्र में कोई प्रत्याख्यान नहीं है कि याची के बच्चे दिल्ली के स्कूल में जा रहे हैं। वह राशन ले रहा है और बैंक खाते को चालू रखे हुए हे। वह अपने क्रेडिट कार्ड का उपयोग कर रहा है और यह कि वह जिन आपराधिक मामलों में लिप्त था उनके लिए वह दिल्ली के अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय में हाजिर होता रहा है। प्राधिकारियों द्वारा दिए गए इस अस्पष्ट कथन के सिवाय कि याची को गिरफ्तार नहीं किया जा सका इसके अलावा ऐसा कोर्इ ब्यौरा नहीं दिया गया है कि निरोध आदेश का निष्पादन क्यों नहीं किया जा सका जबकि निरोध आदेश 28 फरवरी, 1990 को पारित किया गया था।
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