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सीपीसीटी टेस्ट 15 जनवरी 2017 शिफ्ट - 2 (सौरभ कुमार इन्दुरख्या)
created Dec 7th 2018, 18:06 by sourabh indurkhya
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8 नवम्बर 2016 को भारत में कुछ ऐसा हुआ जिससे पूरे देश में हलचल मच गई। रात आठ बजे अचानक ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया और 500 और 1000 के नोटों को खत्म करने का ऐलान सुनाया। इसका लक्ष्य केवल काले धन पर नियंत्रण ही नहीं बल्कि जाली नोटो से छुटकारा पाना भी था। यह योजना करीब छह महीने बननी शुरू हुई थी। सरकार के इस फैसले की जानकारी केेेेवल कुछ लोगों को ही थी जिनमें मुख्य सचिव नृपेंद्र मिश्रा, पूर्व और वर्तमान आरबीआई गवर्नर, वित्त सचिव अशोक लवासा, अर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास और वित्त मंत्री अरूण जेटली शामिल थे। योजना को लागू करने की प्रक्रिया दो महीने पहले शुरू हुई थी। इससे पहले भी, इसी तरह के उपायों को भारत में लागू किया गया था। जनवरी 1946 में, 1,000 और 10,000 रुपए के नोटाेे को वापस ले लिया गया था और 1,000, 5,000 एवं 10000 रुपए के नए नोटों को 1954 से फिर शुरू किया गया था। इसके बाद भी गई फैसले लिए गये तकि काले धन पर अंकुश लगाया जा सके। दरअसल कई लोग जाली नकदी को भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों मे इस्तेमाल कर रहे थे जिसके परिणामस्वरूप नोटों को खत्म करने का निर्णय लिया गया था। अतीत में, भाजपा ने नोटबन्दी को जोरदार विरोध किया था। और भाजपा प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने यह भी कहा कि वह लोग अनपढ़ है बैंकिंग सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सकते, ऐसे लोगों केे लिए इस तरह के उपाय फलदासी नहीं होंगे। मुख्य रूप से कुछ समय के अंतराल में स्वयं जनता 2000 के नाेेेट को चलन से बाहर कर देेेगी, क्योंकि कम दसम की वस्तु खरीदते समय कोई दुकानदार 2000 के नोट नहीं लेगा। इसके चलते काले धन में बढोतरी ही होगी। सरकार को इस विषय पर शुरू से ही संचेत रहने की आवश्यकता है। इस नोटबंदी का असर कुछ ऐसा देखा गया कि अनेक बाजारों में दुकानों को छापे के डर की वजह से बन्द कर दिया गया। हवाला करने वाले इधर उधर फिरने लगे और सोचने लगे कि इस तरह की भारी नगदी केे साथ क्या करना चाहिए। देश के कई राज्यों में आयकर विभाग ने छापे मारे जिसमें दिल्ली, मुम्बई, चंडीगढ और लुधियाना शमिल थे। किंतु इसमें बहुत से लोगों की उम्मीदेें भी बंधी है। माना जा रहा िकि रीयल एस्टेट यानी मकान एवं जमीन आदि के काम होंगे।
