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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT & MP High Court
created Dec 10th 2018, 10:30 by subodh khare
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कंपनी मामलों के मंत्रालय ने राष्ट्रीय कंपनी लॉ पंचाट के अधीन आठ विशेष अदालतों गठित करने का निर्णय लिया है ताकि विशेष तौर पर दिवालिया मामलों से निपटा जा सके। यह कदम स्वागतयोग्य है। ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता 2016 में प्रवर्तन में आई। यह अब तक फंसे हुए कर्ज की भारी भरकम समस्या से निपटने का सबसे अच्छा तरीका साबित हो रहा है। यह वह संकट है जिसने देश के बैंकिग और कारोबारी जगत को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया है। एनसीएलटी इस ऋणशोधन प्रक्रिया की रीढ़ है। परंतु अगर समान न्यायिक ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया बोर्ड की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक एनसीएलटी ने 907 मामले विचारार्थ स्वीकार किए जिनमें से 32 मामले मंजूर हुए हैं। इससे 498 अरब रुपए की राशि की प्राप्ति हुई है। कई अन्य मामले नकदीकरण की प्रक्रिया में हैं। मार्च 2018 तक यह संख्या 87 थी। चूंकि यह प्रक्रिया नई है और दिवालिया कानून में नए मामलों के साथ बदलाव हो रहा है, उदाहरण के लिए प्रवर्तकों को अपनी कंपनी के लिए बोली लगाने की पात्रता आदि, तो ऐसे में इसे उत्साहजनक माना जा सकता है। परंतु दो तथ्य इस रिकॉर्ड की दृढ़ता कमो रेखांकित करते हैं। पहला, आईबीसी की प्रक्रिया की एक अहम बात यह थी कि यह समयबद्ध है। इसके लिए 270 दिल की अवधि की इजाजत है। अब तक निस्तारण के लिए स्वीकृत 390 कंपनियों ने इस अवधि का उल्लंघन किया है। एक अन्य बात यह है कि बैंकिंग व्यवस्था के 83 खरब रुपये के फंसे हुऐ कर्ज को देखते हुऐ अब तक हुइ्र प्राप्तियां सागर में एक बूॅद के समान हैं। अपील और समीक्षा के संदर्भ में देखें तो विधिक मामलों ने प्रक्रिया को धीमा किया है लेकिन यह कारक 10 फीसदी से भी कम मामलों के लिए उत्तरदायी है। दिवालिया मामलों के अलावा पंचाट कंपनी अधिनियम के अधीन विलय और अधिग्रहण तथा अन्य मामले लंबित हैं। इसका समर्थन नहीं किया जा सकता है। पीठों के समक्ष मामलों के वितरण में भी विसंगति है। दिल्ली में दो पीठ हैं जबकि मुंबई और कोलकाता में एक-एक पीठ। दिवालिया मामलों के लिए विशेष तौर पर आठ अदालतें गठित करने का निर्णय एक बड़ी खामी तो दूर करेगा। खासतौर पर तब जबकि मुंबई जैसी व्यस्त जगह पर इसका विस्तार भी किया जायेगा।
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