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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT & MP High Court

created Dec 12th 2018, 09:25 by GuruKhare


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नीति आयोग का यह कहना कि कर्ज माफी से किसानों की समस्‍याएं दूर नहीं होती हैं और सही मायने में इसका फायदा एक सीमित वर्ग को ही पहुंचता है, कर्ज माफी के औचित्‍य पर गंभीर सवाल खड़े करता है। इसमें कोई शक नहीं कि कर्ज माफी से किसी समस्‍या का समाधान नहीं होता, खासतौर से किसानों की मुश्किलें तो कभी दूर नहीं हुईं। अगर कर्ज माफ होने से ही किसानों की समस्‍याओं का समाधान हो जाता तो किसान समुदाय सड़कों पर उतरने और धरने देने को मजबूर नहीं होता। हाल में राजधानी दिल्‍ली में देशभर से आए किसानों ने बड़ा मार्च निकाला इससे पहले दो अक्‍टूबर को किसान राजघाट पर धरना देने के लिए दिल्‍ली पहुंचे थे। नीति आयोग के सदस्‍य और कृषि नीति विशेषज्ञ रमेश चंद का कहना है कि कर्ज माफी समस्‍या का  अंतिम समाधान नहीं होता है और ही इसका लाभ सारे किसानों को मिल पाता है, इसलिए इसे किसानों की समस्‍या के हल के रूप में देखना व्‍यावहारिक नहीं है। खुद नीति आयोग ने इस तथ्‍य को माना है कि गरीब राज्‍यों में कर्ज माफी से मात्र दस से पंद्रह फीसद किसानों को फायदा पहुंचता है। ऐसे में कर्ज माफी का लाभ संदेह के घेरे में आना स्‍वाभाविक है।
    किसानों की कर्ज माफी को लेकर सवाल पहले भी उठते रहे हैं। चुनाव का वक्‍त करीब आते ही सभी दल और सरकारें किसानों को जो सबसे बड़ा झुनझुना पकड़ाते हैं वह कर्ज माफी का ही होता है। उत्‍तर प्रदेश में मौजूदा सरकार ने सत्‍ता में आने के बाद किसानों के एक लाख तक के कर्ज माफ किए थे। हाल में राजस्‍थान में सरकार ने किसानों के पचास हजार तक के कर्ज माफ कर दिए। पंजाब में भी किसानों को इसी तरह की राहत दी गई। कर्नाटक में भी राज्‍य सरकार ने किसानों के दो लाख तक के कर्ज माफ करने का एलान किया था। लेकिन हकीकत यह है कि इन किसानों के कर्ज माफ किए जाएं और उनका राजनीतिक लाभ हासिल किया जाए। कुल मिला कर किसानों की कर्ज माफी सत्‍ता में आने के लिए राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ा हथियार बन गया है। इसे एक अच्‍छी प्रवृत्ति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

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