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created Dec 13th 2018, 10:29 by SubodhKhare1340667


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हैरत है कि यह सब उस प्रदेश में हो रहा है, जिसे सबसे ज्‍यादा साक्षर माना जाता है। शत-प्रतिशत साक्षर। केरल की साक्षरता से दुनिया के कई विकसित देश भी ईर्ष्‍या कर सकते हैं। लेकिन भगवान अयप्‍पा के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को रोकने के लिए इस प्रदेश में जो हो रहा है, वह पेरशान करने वाला है। वैसे तो इस मंदिर में दर्शन और पूजन को लेकर बड़ा ही सख्‍त नियम है। उनमें एक यह भी है कि 10 से 50 बरस तक की महिलाएं मंदिर में प्रवेश करके भगवान अयप्‍पा के दर्शन नहीं कर सकतीं। कई महिलाएं बरसों से मंदिर में प्रवेश की लड़ाई लड़ रही हैं। अब जब देश की सबसे बड़ी अदालत भी उनके मंदिर प्रवेश की सारी बाधाएं दूर कर चुकी है, तो केरल की सड़कों पर नई बाधाएं उनका इंतजार कर रही थी। यह ठीक है कि पूरा मामला अब जहां पहुंच चुका है, वहां यह लगभग तय हो चुका है कि महिलाओं का सबरीमाला मंदिर में प्रवेश बस समय की ही बात है। अब इसे रोकना मुमकिन नहीं है। पिछले 15 दिनों से केरल की सड़कों पर जो भीड़ बाधा बनने के लिए खड़ी है, कारों, बसों और तमाम गा‍डियों से महिलाओं को उतार रही है, मुमकिन है कि उसके नेता भी यह अच्‍छी तरह जानते हों कि अब इसे रोक पाना संभव नहीं है।
    लेकिन फिर भी यह हारी हुई लड़ाई जिस तरह लड़ी गई, वह चिंता पैदा करने वाली तो है ही। प्राचीन मान्‍यताएं और आधुनिक मूल्‍य जब आमने-सामने खड़े होते हैं, तो इस तरह के टकराव सामने आते ही हैं। दुनिया भर में यही हुआ है। और अंत में प्राचीन रवायतों को नए दौर की जरूरतों के आगे समर्पण करना ही पड़ता है। ऐसा तब भी हुआ था, जब सती प्रथा के अंत की कोशिशें, की गई थी। तब भी हुआ था, जब विधवा विवाह को मान्‍य बनाने की कोशिश हुई। तब भी, जब  बाल विवाह के खिलाफ अभियान चला था और तब भी, जब हरिजनों को मंदिर में प्रवेश दिलाने की कोशिशें हुई थीं। इन पुरातन मान्‍यताओं के कुछ अंश भले ही आज भी बच गए हों, लेकिन इन्‍हें जाना ही था। क्‍योंकि नया दौर और बहुत सी पुरानी मान्‍यताएं एक साथ नही चल सकते। तो नए दौर को आने से रोका जा सकता है और ही पुरानी मान्‍यताओं को जाने से। लेकिन ऐसी पुरानी मान्‍यताओं से तरह-तरह के जुड़ाव के चलते ऐसी शक्तियां खड़ी हो जाती हैं, जो बदलाव का विरोध ही नहीं करतीं, इस कोशिश में उग्र भी हो जाती हैं। ऐसा पहले भी होता रहा है, यी अब भी हो रहा है।

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