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अयोध्या आंदोलन का सबसे विवादास्पद नारा है मंदिर वहीं बनाएंगे इस नारे में न सिर्फ मंदिर की मांग है बल्कि इसमें अधिकार और संकल्प की जबर्दस्त ध्वनि भी है। शायद इसीलिए अयोध्या में मंदिर मांगने वाले लोगों पर तत्काल सांप्रदायिक का ठप्पा लगा दिया जाता है, उन्हें भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के खिलाफ और अतार्किक माना जाता है। लेकिन, अयोध्या में मंदिर बनाने का यह एकमात्र रास्ता नहीं है। वास्तव में बलपूर्वक या दूसरे समुदाय को रुष्ट करके बनाए मंदिर में भी उचित ऊर्जा, वाइब्रेशन अथवा आस्था नहीं होगी। मैं यहां अध्योध्या मंदिर मुद्दे को सुलझानेकी वैकल्पिक राह बताता हूँ। यह समाधान जिसे मैं थ्री स्ट्रक्चर समाधान कहता हूँ, वह वास्तव में न सिर्फ भारत का बल्कि दुनिया का अनूठा तीर्थ व पर्यटन स्थल बनाने का अनूठा अवसर है।
इसमें मौजूदा स्थल पर या उसके नजदीक तीन संरचनाएं बनाने की योजना शामिल है। ये इस प्रकार है मौजूदा स्थल पर नया मंदिर इससे लगा मंदिर मस्जिद का मिलाजुला म्यूजियम, मैजूदा स्थल से पैदल चलकर जाने लायक दूरी पर नई मस्जिद बेशक, इसमें सबसे ज्यादा चर्चा का मुद्दा मंदिर-मस्जिद के मिले-जुले ढांचे का होगा। यह हो कैसे सकता है, क्या ऐसा कभी किया गया है? और यह कैसा दिखेगा? और यह किसका प्रतिनिधित्व करेगा। हालांकि इसके पहले कि हम समाधान के ब्योरों में जाएं, जल्दी से अयोध्या मुद्दे पर गौर करें। इस जगह को भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है, जो हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले देवताओं में से एक हैं। यह आस्था का मामला है, इसलिए किसी भी तरह के सबूत से लोगों को इस या उस दिशा में कुछ सिद्ध करने दिखाना या यकीन दिलाना संभव नहीं है। एएसआई की रिपोर्टें हैं, जिनमें बाबरी मस्जिद की जगह पर कभी मंदिर होने का इशारा दिया गया है। उन रिपोर्टों पर भी विवाद हुआ था। हालांकि, यह जगह बहुत सारे हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, ज्यादातर आस्था की खातिर। मुस्लिमों के लिए बाबरी मस्जिद महत्वपूर्ण है। फिर चाहे इसका उनके लिए उतना महत्व न हो जितना राम जन्मभूमि का हिंदुओं के लिए है।
इसलिए लगता है कि ऐसा समाधान संभव दिखता है जहां मुस्लिम समुदाय के सहयोग से हिंदु अपना मंदिर बना सके। यहां पर सहयोग शब्द अहम है। इसे राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान पहले कभी इतना नहीं आजमाया गया। मंदिर वहीं बनेगा की रट ने इस मुद्दे को विभाजनकारी बना दिया और इसे बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों को धमकाने के रूप में देखा गया।
इसमें मौजूदा स्थल पर या उसके नजदीक तीन संरचनाएं बनाने की योजना शामिल है। ये इस प्रकार है मौजूदा स्थल पर नया मंदिर इससे लगा मंदिर मस्जिद का मिलाजुला म्यूजियम, मैजूदा स्थल से पैदल चलकर जाने लायक दूरी पर नई मस्जिद बेशक, इसमें सबसे ज्यादा चर्चा का मुद्दा मंदिर-मस्जिद के मिले-जुले ढांचे का होगा। यह हो कैसे सकता है, क्या ऐसा कभी किया गया है? और यह कैसा दिखेगा? और यह किसका प्रतिनिधित्व करेगा। हालांकि इसके पहले कि हम समाधान के ब्योरों में जाएं, जल्दी से अयोध्या मुद्दे पर गौर करें। इस जगह को भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है, जो हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले देवताओं में से एक हैं। यह आस्था का मामला है, इसलिए किसी भी तरह के सबूत से लोगों को इस या उस दिशा में कुछ सिद्ध करने दिखाना या यकीन दिलाना संभव नहीं है। एएसआई की रिपोर्टें हैं, जिनमें बाबरी मस्जिद की जगह पर कभी मंदिर होने का इशारा दिया गया है। उन रिपोर्टों पर भी विवाद हुआ था। हालांकि, यह जगह बहुत सारे हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, ज्यादातर आस्था की खातिर। मुस्लिमों के लिए बाबरी मस्जिद महत्वपूर्ण है। फिर चाहे इसका उनके लिए उतना महत्व न हो जितना राम जन्मभूमि का हिंदुओं के लिए है।
इसलिए लगता है कि ऐसा समाधान संभव दिखता है जहां मुस्लिम समुदाय के सहयोग से हिंदु अपना मंदिर बना सके। यहां पर सहयोग शब्द अहम है। इसे राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान पहले कभी इतना नहीं आजमाया गया। मंदिर वहीं बनेगा की रट ने इस मुद्दे को विभाजनकारी बना दिया और इसे बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों को धमकाने के रूप में देखा गया।
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