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VSCTI MORENA HINDI TYPING HIGH COURT 13/12/2018
created Dec 14th 2018, 12:11 by RohiniSharma
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अनुकल्पत: रूप में याची के विद्वान काउंसेल द्वारा यह निवेदन किया गया कि उसने लगभग साढे नौ वर्ष की सेवा पूरी की है जिसमें प्रशिक्षण की अवधि सम्मिलित है और इस प्रकार, राजस्थान सिविल सेवा पेंशन नियम 1996 के उपबंधों के अधीन याची के मामले में छूट दी जा सकती है। स्वीकृतत: याची ने पेंशन प्रयोजन के लिए 10 वर्ष की अर्हता सेवा पूरी नहीं की है। राज्य सरकार के कर्मचारियों की सेवा शर्तें समय समय पर राज्य सरकार द्वारा बनाए गए सेवा नियमों से शासित होती हैं और राज्य सरकार को यह परमाधिकार होता है कि वह सेवा शर्तों में परिवर्तन कर सके। राज्य सरकार ने नीतिगत विनिश्चय करते हुए कर्मचारियों की अधिवर्षिता आयु 60 वर्ष से घटाकर 58 वर्ष करने का निर्णय लिया। विधि की यह सुस्थिर प्रतिपादना है कि यह न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 226 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार के नीतिगत विनिश्चयों में हस्तक्षेप नहीं करता है जब तक कि यह लोकनीति के विरूद्ध न हो। इसके अलावा वर्तमान मामले में वचन विबंध का सिद्धांत लागू नहीं होता है क्योंकि याची की सेवा शर्तें राज्य सरकार द्वारा समय समय पर बनाए गए नियमों से शासित होती हैं और राज्य सरकार का यह परमाधिकार होता है कि वह सेवा शर्तों मे परिवर्तन कर सके। ऐसे मामलों में वचन निबंध का सिद्धांत लागू नहीं होता है और तद् द्वारा याची के विद्वान काउंसेल द्वारा दिए गए इस तर्क को नामंजूर किया जाता है। इसके अतिरिक्त यदि पेंशन के प्रयोजन के लिए अर्हता सेवा की गणना करते हुए प्रशिक्षण अवधि की भी गणना की जाए तो भी याची 10 वर्ष की अर्हता सेवा पूरी नहीं करता है और इस प्रकार वह पेंशन का फायदा प्राप्त करने का हकदार नहीं है। उपर्युक्त उल्लिखित कारणों से, यह अभिनिर्धारति किया जाता है कि याची पेंशन फायदों को प्रप्त करने का हकदार नहीं है क्योंकि उसने सिविल सेवा पेंशन नियम 1996 के अधीन यथाउपबंधित पेंशन प्रयोजन के लिए अर्हता सेवा पूरी नहीं की है और प्रत्यर्थियों द्वारा नियमों के अधीन उचित रूप से याची को पेंशन देने से इंकार किया गया है। तदनुसार वर्तमान याचिका खारिज की जाती है। खर्चें का कोई आदेश नहीं किया गया है।
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