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VSCTI MORENA HINDI TYPING FOR HIGH COURT 24/12/2018
created Dec 24th 2018, 11:00 by VSCTI MORENA
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अभियोजन के पक्षकथन के अनुसार राजस्व आसूचना निदेशालय के अधिकारियों को सूचना मिली कि विनिषिद्ध सोने का परेषण दिल्ली में लाया जा रहा है। उक्त अधिकारियों ने सोना ला रही जीप को मार्ग में रोक लिया और तलाशी के लिए कार्यालय में ले आए। तलाशी के पश्चात् यह पता चला कि निरूद्ध व्यक्तियों के पास विनिषिद्ध सोना था। अधिकारियों ने इस युक्तियुक्त विश्वास के अधीन सोने की सिल्लियां अभिगृहीत कीं कि वे तस्करी की वस्तुएं थीं और जब्त किया जाना चाहिए। निरोध प्राधिकारी ने तथ्यों को ध्यान में रखते हुए निरोध आदेश पारित किया। निरुद्ध व्यक्तिायों ने निरोध प्राधिकारी को अभ्यावेदन दिए और केन्द्रीय सरकार ने उन्हें नामंजूर कर दिया। निरुद्ध व्यक्तियों ने उच्च न्यायालय में रिट याचिका फाइल करके उक्त निरोधादेश को चुनौती दी है। उच्च न्यायालय द्वारा याचिका खारिज करते हुए, - इस निष्क्रियता का कोई स्पष्टीकरण न दिए जाने के कारण यह प्रतिकुल निष्कर्ष निकाल गया था। प्रस्तुत मामले में हमारे समक्ष जो सामग्री पेश की गई है उससे वास्तव में निरुद्ध व्यक्ति के विद्वान काउंसेल ने भी इनकार नहीं किया है कि वित्त सचिव, जो अभ्यावेदन पर विचार करने के लिए एकमात्र सक्षम व्यक्ति थे वे तारीख 25 दिसम्बर 1999 करे मुम्बई की यात्रा पर गए थे और उनकी यात्रा कार्यक्रम मुम्बई से पूना और गाेवा का निश्चय किया जाना था। उचित ही यह स्वीकार किया गया है कि तारीख 1 और 2 जनवरी, 2000 को छुट्टी थी और वित्त सचिव तारीख 3 जनवरी 2000 को वापस आए और वापस आने के पश्चात् उन्होंने तरीख 5 जनवरी, 2000 को अभ्यावेदन का निपटारा किया। यह ऐसा मामला नहीं है कि जिसमें यह कहा जा सके कि निष्क्रियता दर्शाने वाली कोई अस्पष्टीकृत अवधि थी। जैसा कि राजाम्मल (पूर्वोक्त) वाले मामले में यह मत व्यक्त किया गया था अभ्यावेदन का निपटारा करने में लगा समय सुसंगत नहीं है अपितु सुसंगत यह है कि पता लगाया जाए कि निष्क्रियता या लम्बे विलम्ब का स्पष्टीकरण दिया गया है या नहीं। इस प्रकार, कसौटी विलम्ब की अवधि नहीं है बल्कि संबंधित प्राधिकारी द्वारा इस संबंध में स्पष्टीकरण क्या दिया गया है यह सुसंगत है।
