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DARSH HIGH COURT AND CPCT CLASSES JABALPUR 9301028053

created Jan 11th 2019, 16:16 by VikramBharti


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दंड प्रक्रिया संहिता धारा 438 - अग्रिम जमानत प्रथम आवेदन भारतीय दंड संहिता की धाराएं 452,292,323,506 और 34 के अधीन के अपराधों के लिए पुलिस थाना में पंजीकृत अपराधों के संबंध में अपीलार्थी को उसकी गिरफ्तारी की आशंका है अपीलार्थी बी.टेक. फाइनल ईयर का विद्यार्थी है भारतीय दण्‍ड संहिता की धारा 452 के अलावा सभी अपराध जमानतीय है जबकि विद्यार्थियों के मध्‍य झगड़ा हॉस्‍टल एक आवासीय परिसर का हिस्‍सा है धारा 452 नहीं बनती है आवेदक की अग्रिम जमानत  स्‍वीकार किये जाने के लिए उचित मामला जमानत आवेदन स्‍वीकार।
37 के अधीन अन्‍वेषण के पूर्ण करने के बाद न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट, प्रथम श्रेणी, दुर्ग के समक्ष फाइल किया गया था, जिसने सत्र न्‍यायालय, दुर्ग को मामले को अभ्‍यर्पित किया, जहां से मामला अन्‍तरण पर अपर सत्र न्‍यायाधीश, दुर्ग ने विचारण हेतु  प्राप्‍त किया। अभियोजन ने कम से कम सात साक्षियों की अभियुक्‍त/अपीलार्थी का दोष सिद्ध करने के लिये इसके मामले के समर्थन में परीक्षण किया। संहिता की धारा 313 के अधीन परीक्षण किया। संहिता गया था, जिसमें उसने उसके विरुद्ध ओय तथ्‍यों से मना किया एवं निर्दोष होने एवं प्रश्‍नगत अपराध में मिथ्‍या फँसाया जाने  का अभिवचन किया। 2 साक्षियों अर्थात् (प्रति.सा. 1) एवं (प्रति.सा. 2) का उसके मामले के समर्थन में अभियुक्‍त ने भी परीक्षण किया।  
 विद्वान अपर सत्र न्‍यायाधीशगण ने पक्षकारों को सुनवाई का अवसर उपलब्‍ध कराने के बाद अपीलार्थी को उक्‍तानुसार वर्णित दो‍षसिद्ध एवं दण्‍डादिष्‍ट किया। दोनों पक्षकारों के विद्वान वकीलों के मैंने सुना एवं आक्षेपित निर्णय का विचारण न्‍यायालय के अभिलेख सहित परिशीलन किया।  
शुरु में में, विद्वान वकील, अपीलार्थी के लिए उपस्थित होते हुए ने दृढ़तापूर्वक दलील दी कि मुख्‍य रूप से अभियोक्‍त्री (अभि.सा. 2) के साक्ष्‍य पर अपीलार्थी की दोषसिद्धि आधारित है, परन्‍तु विश्‍वास उत्‍पन्‍न उनके साक्ष्‍य नहीं  करतें एवं विश्‍वसनीय नहीं हैं। कोई चिकित्‍सीय और न्‍या.वि.प्र. रिपोर्ट भी अभियोजन के मामले के समर्थन के लिये नहीं है। इसलिए, अपीलार्थी की दोषसिि‍द्धि एवं दण्‍डादेश विधि के अधीन तर्कपूर्ण एवं अकाट्य साक्ष्‍य के अभाव में पोषणीय नहीं है। और आरोपों से अपीलार्थी दोषमुक्‍त किये जाने योग्‍य है।  
   इसके विपरीत, अपील का राज्‍य के विद्वान पेनल वकील ने प्रतिरोध किया एवं निवेदन किया कि शंका के परछाई से परे अभियोजन ने इसका मामला सिद्ध किया। अभियुक्‍त अपीलार्थी का दोष सिद्ध करने के लिए अभियोक्‍त्री (अभि.सा. 1) एवं (अभि.सा. 2) का साक्ष्‍य पर्याप्‍त है। इसलिए, आरोपों से अपीलार्थी दोषमुक्‍त किये जाने योग्‍य नहीं है।  
मैंने अभियोजन की ओर से प्रस्‍तुत साक्ष्‍य का, पक्षकारों की ओर से दी गई दलीलों को मूल्‍यांकित करने के अनुसरण में परीक्षण किया। प्रश्‍नगत अपराध में अपीलार्थी की संलिप्‍तता के संबंध में, अभियोक्‍त्री एवं उसकी पुत्री की दोषसिद्धि मुख्‍य रूप से आधारित है। लगभग 8:30 अपराहृ बजे, उसके बच्‍चे डॉ. के घर टी.वी. देखने के लिए अभियोक्‍त्री के साक्ष्‍य के अनुसार गये थे, घर में उसका पति भी उपस्थित नहीं था। लेकिन ताला नहीं लगा था, अपने घर में वह सो रही थी, दरवाजा बंद था लेकिन ताला नहीं लगा था, कमरे में अभियुक्‍त ने प्रवेश किया एवं जब वह उससे लैंगिक सम्‍भाेग कारित करने की कोशिश कर रहा था,  
वह चिल्‍लाई, उसकी पुत्री (अभि.सा. 2) तब वहां आई एवं घटना को देखा, अभियुक्‍त उसके बाद भाग गया। उसने यह भी कथित किया कि अभियुक्‍त ने उस पर जब हमला किया उसने विरोध किया, उसकी दाहिनी कोहनी पर क्षति वहन की, खून निकल रहा था और न्‍यायालय में कथन पूर्व सलाह ली थी कि कैसेट कथना किया जाना है। यह भी उसने स्‍वीकार किया कि टंकी का उपयोग करने के लिए उसके घर के पास हर समय लोग आते हैं। अभियुक्‍त-अपीलार्थी ने कारित किया, उसने केवल यह रिपोर्ट की कि उसकी लज्‍जा पर अभियक्‍त ने हमला  किया, इसलिए, यह स्‍पष्‍ट है कि न्‍यायालय में उसने अतिशयोक्तिपूर्ण कथन दिया, जिसका कि अवलम्‍बन नहीं लिया जा सकता।  

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