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अध्यक्ष महोदय, सबसे पहले मैं अपने माननीय कार्यकारी पार्षद महोदय का जिन्होंने बजट भाषण दिया है और अपनी नीतियों की घोषणा की है, उसके बारे में उनको हृदय से बधाई देना चाहता हूँ। मैं यह नहीं कहता कि कोई क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना चाहता है यह बजट, लेकिन मैं यह भी देखता हूं कि यह बजट जो है धीरे-धीरे गति से समाजवाद की ओर बढ़ता जा रहा है, अपनी नीति से यह भूतकाल और वर्तमान दोनों को एक कड़ी में मिलाकर हमें उज्जवल भविष्य की ओर ले जाता है ऐसा मुझे कहना है इस भाषण को पढ़ने से कि इसमें हमारा कोई भी वर्ग समाज का ऐसा नहीं है जिसे अछूता छोड़ा गया हो। क्योंकि भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश है और मैं यह समझता हूं कि इस बजट के दौरान यह पूरी तरह से कोशिश की गई है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जिसे हम अर्थव्यवस्था की रीड़ भी कह सकते हैं उस ढा़ंचे में उस रीड़ की हड्डी को और भी सशक्त बनाने का पूरी तरह से प्रयत्न किया गया है। हमारे ग्रामीण भाईयों के लिए जो कोशिश की गई है इस बजट के अंतर्गत वह है उनको सिंचाई के लिए कुएं, गांव में उनके लिए पक्की सड़कें जिससे उनके खेत और घर दिल्ली के साथ जोड़ने की कोशिश की गई है। जितनी भी इसमें व्यवस्था की गई है उससे ग्रामीण भाईयों को बड़ी भारी सहायता मिलेगी उसके अतिरिक्त ग्रामोद्योग द्वारा जो रोजगारी का प्रबन्ध किया गया है उससे भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक बहुत बड़ी सहायता मिलेगी । मैं इनका ध्यान इस ओर दिलाना चाहता हूं कि जहां तक शिक्षा का सम्बन्ध है इस बजट में कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया है। मैं यह नहीं कहता कि शिक्षा के दौरान ज्यादा स्कूल न खोले जाएं पर हमारी यह नीति होनी चाहिए कि भले ही स्कूल थोड़े खोले जाएं पर सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा की नीति में परिवर्तन की ज्यादा आवश्यकता है। क्योंकि हम प्रजातन्त्र में रहते हैं, प्रजातन्त्र को अगर हमें सफल बनाना है तो सबसे पहले हमें ऐसे नागरिक चाहिए जिन्हें अपने अधिकारों और अपने कर्तव्यों का भली-भांति ज्ञान हो शिक्षा की वर्तमान नीति से हम अपने अधिकारों के प्रति ज्यादा सजग होंगे और कर्तव्यों के प्रति बिल्कुल सजग नहीं होंगे।
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