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MP HIGH COURT HINDI MATTER
created Jan 20th 2019, 14:10 by user1342933
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भारतीय गांवों का देश है। भारत की आत्मा गांवों और किसानों में बसती है। इसलिए भारत एक कृषि प्रधान देश भी कहलाता है। यहॉं की 70-80 प्रतिशत जनता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करती है। किसान हमारे लिए अन्न, फल, सब्जिया आदि उपजाता है।
वह पशु पालन भी करता है। लेकिन भारतीय किसान की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। स्वतंत्रता के 50 से अधिक वर्षो के बाद भी गरीब अशिक्षीत और शक्तिहीन हैं। उसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है। उसके परिवार के सदस्य भी दिन रात खेत खलयान में जुटे रहते हैं। बड़ी कठिनाई से वह अपना और अपने बाल बच्चों का पेट भर पाता है।
अभी भी उसके पास वही बरसों पुरानी खेती के साधन हैं। उसे बहुत कुछ मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर समय पर अच्छी बरसात नहीं होती, तो उसके खेत सूखं पड़े रहते हैं। गांव में अकाल पड़ जाता है, और भूखों मरने की नौबत आ जाती है। वह अपने हाथों से कठोर परिश्रम करता है, खून पसीन बहाता है, फिर भी वह गरीब और परवश है।
उसकी आय इतनी कम होती है कि वह अच्छे बीज, खाद, औजार और पशु नहीं खरीद पाता। वह अशिक्षित है, और कई अंधविश्वासों और कुरुतियों का शिकार। सेठ-साहूकार इसका पूरा लाभ उठाकर उसका शोषण कर रहे हैं। वह अपनी संतान को पड़ाने के लिए भी नहीं भेज सकता। या तो गांव में स्कूल नहीं होता, या फिर बहुत दूर होता है।
इसके अतिरिक्त वह बच्चों से खेती पर काम लेने के लिए विवश है। वह उन्हें पशु चराने जंगल में भेज देता हैं। सरकार ने भारतीय किसान की सहायता के लिए कुछ कदम उठायें हैं। उसे कम ब्याज पर कर्ज देने की व्यवस्था की गई है जिससे वह बीज, खाद आदि क्रय कर सके। परन्तु यह पर्याप्त नहीं है। सच तो यह है कि उस तक सहायता पहुंच नहीं पाती। बिचौलिये बीच में ही हड़प लेते हैं।
अशिक्षित होने के कारण वह अपने, अधिकारीयों के प्रति जागरूक नहीं हैं। दूसरे लोग सरलता से उसके अधिकारों का हनन कर लेते हैं। उसे शिक्षित किया जाना बहुत आवश्यक हैं। इसके लिए प्रथमिक शिक्षा को अनिवार्य मुफ्त और सर्वसुलभ बनाने की परम आवश्यकता है। हर गांव में उसके पास स्कूल खोले जाना चाहिये।
वह पशु पालन भी करता है। लेकिन भारतीय किसान की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। स्वतंत्रता के 50 से अधिक वर्षो के बाद भी गरीब अशिक्षीत और शक्तिहीन हैं। उसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है। उसके परिवार के सदस्य भी दिन रात खेत खलयान में जुटे रहते हैं। बड़ी कठिनाई से वह अपना और अपने बाल बच्चों का पेट भर पाता है।
अभी भी उसके पास वही बरसों पुरानी खेती के साधन हैं। उसे बहुत कुछ मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर समय पर अच्छी बरसात नहीं होती, तो उसके खेत सूखं पड़े रहते हैं। गांव में अकाल पड़ जाता है, और भूखों मरने की नौबत आ जाती है। वह अपने हाथों से कठोर परिश्रम करता है, खून पसीन बहाता है, फिर भी वह गरीब और परवश है।
उसकी आय इतनी कम होती है कि वह अच्छे बीज, खाद, औजार और पशु नहीं खरीद पाता। वह अशिक्षित है, और कई अंधविश्वासों और कुरुतियों का शिकार। सेठ-साहूकार इसका पूरा लाभ उठाकर उसका शोषण कर रहे हैं। वह अपनी संतान को पड़ाने के लिए भी नहीं भेज सकता। या तो गांव में स्कूल नहीं होता, या फिर बहुत दूर होता है।
इसके अतिरिक्त वह बच्चों से खेती पर काम लेने के लिए विवश है। वह उन्हें पशु चराने जंगल में भेज देता हैं। सरकार ने भारतीय किसान की सहायता के लिए कुछ कदम उठायें हैं। उसे कम ब्याज पर कर्ज देने की व्यवस्था की गई है जिससे वह बीज, खाद आदि क्रय कर सके। परन्तु यह पर्याप्त नहीं है। सच तो यह है कि उस तक सहायता पहुंच नहीं पाती। बिचौलिये बीच में ही हड़प लेते हैं।
अशिक्षित होने के कारण वह अपने, अधिकारीयों के प्रति जागरूक नहीं हैं। दूसरे लोग सरलता से उसके अधिकारों का हनन कर लेते हैं। उसे शिक्षित किया जाना बहुत आवश्यक हैं। इसके लिए प्रथमिक शिक्षा को अनिवार्य मुफ्त और सर्वसुलभ बनाने की परम आवश्यकता है। हर गांव में उसके पास स्कूल खोले जाना चाहिये।
