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created Feb 11th 2019, 07:29 by SubodhKhare1340667
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इस प्रकरण में याचिकाकर्ता अवयस्क लड़की किरणदेवी, जिसकी उम्र 15 वर्ष थी, का पिता है। किरणदेवी दिनांक 27 मार्च को उसके घर से गायब पाई गई थी इसी दिनांक को एक लड़का जगतपाल भी उसके घर से गायब पाया गया था। याचिकाकर्ता ने उसकी पुत्री किरणदेवी की गुमशुदगी रिपोर्ट पुलिस थाना कोतवाली, दमोह पर की थी। पुलिस ने खोज करने के बाद लड़के जगतपाल को पकड़ा और किरणदेवी को भी अभिरक्षा में लिया। बरामदगी के बाद किरणदेवी को निर्मलछाया भेज दिया गया। उसने कथन दिया था कि उसके माता-पिता उसकी शादी जगतपाल के साथ स्वीकार नहीं कर रहे थे। पूर्व में उसने यह कथन दिया था कि वह जगतपाल के साथ अपनी मर्जी से गयी थी और उसने बिना किसी दबाव और प्रभाव के अपनी मर्जी से जगतपाल के साथ शादी की है। इन परिस्थितियों में विवाह की वैधता और संरक्षकता का प्रश्न विचार के लिये उठा है।
इस प्रकरण के तथ्यों से स्पष्ट हे कि लड़की का व्यपहरण नहीं हुआ था बल्कि वह जगतपाल के साथ स्वयं भाग गयी थी और उसके साथ शादी कर ली थी। यद्यपि, लड़की की उम्र उसकी शादी के समय 18 से कम थी। यह विवादित नहीं है कि जिस लड़के के साथ उसने शादी की थी, उसकी उम्र शादी के समय 21 वर्ष से अधिक थी। हम प्राय: ऐसे मामले देखते हैं जहां लड़का-लड़की भाग जाते हैं और परिवार या माता-पिता के विरोध के बावजूद विवाह कर लेते हैं। अक्सर ऐसे विवाह अन्तरधर्मीय या अन्तरजातीय होते हैं और प्रबल या आवेशपूर्ण विरोध के बावजूद भी होते हैं।
यद्यपि, लड़का और लड़की दोनों प्यार में होते हैं और वे समाज और माता-पिता की अवज्ञा करते हैं। ऐसे प्रकरणों में न्यायालयों के समक्ष दुविधा और विषम परिस्थिति हो जाती है कि क्या किया जावे। इस प्रश्न का उत्तर आसान नहीं है। हम महसूस करते हैं कि कोई सीधा सरल सूत्र या उत्तर नहीं दिया जा सकता है। यह प्रत्येक प्रकरण के तथ्यों व परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यह निर्णय मुख्य रूप से लड़का व लड़की की रूचि, उनकी समझ के स्तर और परिपक्वता कि क्या वे परिणाम आदि समझते हैं, पर निर्भर करेगा। परिवारों या माता-पिता के रवैये को या तो सकारात्मक या नकारात्मक कारक के रूप में अभिनिर्धारित और विनिश्चत करने के लिये विचार में लेना पड़ेगा कि क्या लड़का-लड़की को एक साथ रहने की अनुमति दी जानी चाहिये या लड़की को उसके माता-पिता के साथ रहने का निर्देश देना चाहिए। संभवतया आखरी निर्देश भी विधिक रूप से उचित हो सकता है लेकिन ठोस व अच्छे कारणों से न्यायालयों के पास अन्यथा आदेश करने का विकल्प भी है।
इस प्रकरण के तथ्यों से स्पष्ट हे कि लड़की का व्यपहरण नहीं हुआ था बल्कि वह जगतपाल के साथ स्वयं भाग गयी थी और उसके साथ शादी कर ली थी। यद्यपि, लड़की की उम्र उसकी शादी के समय 18 से कम थी। यह विवादित नहीं है कि जिस लड़के के साथ उसने शादी की थी, उसकी उम्र शादी के समय 21 वर्ष से अधिक थी। हम प्राय: ऐसे मामले देखते हैं जहां लड़का-लड़की भाग जाते हैं और परिवार या माता-पिता के विरोध के बावजूद विवाह कर लेते हैं। अक्सर ऐसे विवाह अन्तरधर्मीय या अन्तरजातीय होते हैं और प्रबल या आवेशपूर्ण विरोध के बावजूद भी होते हैं।
यद्यपि, लड़का और लड़की दोनों प्यार में होते हैं और वे समाज और माता-पिता की अवज्ञा करते हैं। ऐसे प्रकरणों में न्यायालयों के समक्ष दुविधा और विषम परिस्थिति हो जाती है कि क्या किया जावे। इस प्रश्न का उत्तर आसान नहीं है। हम महसूस करते हैं कि कोई सीधा सरल सूत्र या उत्तर नहीं दिया जा सकता है। यह प्रत्येक प्रकरण के तथ्यों व परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यह निर्णय मुख्य रूप से लड़का व लड़की की रूचि, उनकी समझ के स्तर और परिपक्वता कि क्या वे परिणाम आदि समझते हैं, पर निर्भर करेगा। परिवारों या माता-पिता के रवैये को या तो सकारात्मक या नकारात्मक कारक के रूप में अभिनिर्धारित और विनिश्चत करने के लिये विचार में लेना पड़ेगा कि क्या लड़का-लड़की को एक साथ रहने की अनुमति दी जानी चाहिये या लड़की को उसके माता-पिता के साथ रहने का निर्देश देना चाहिए। संभवतया आखरी निर्देश भी विधिक रूप से उचित हो सकता है लेकिन ठोस व अच्छे कारणों से न्यायालयों के पास अन्यथा आदेश करने का विकल्प भी है।
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