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भारत को इस मुगालते में कतई नहीं रहना चाहिए कि आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने में सऊदी अरब उसकी मदद करेगा। सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की चार देशों की यात्रा का यह उद्देश्य है भी नहीं। प्रिंस सलमान के लिए इस समय पाकिस्तान के आतंकवाद के विरोध से कहीं ज्यादा अपनी ताजपोशी से पहले पड़ोसी देशों का समर्थन जुटाना है। पाकिस्तान के बाद अपनी दो दिनों की भारत और इसके बाद मलेशिया और इंडोनेशिया की यात्रा से प्रिंस वह समर्थन जरूर हासिल कर लेंगे, जिसकी अमेरिकी पत्रकार जमाल खागोशी की इस्तांबुल से सऊदी दूतावास में हुई हत्या के बाद उनको जरूरत है। इसके लिए वे पाकिस्तान को 20 अरब डॉलर की मदद दे चुके हैं। अब भारत में 100 अरब डॉलर के निवेश पर भी सहमति जता चुके हैं। जहां तक आतंकवाद के विरोध की बात है, प्रिंस ने साफ तौर पर कहा है कि सऊदी अरब भारत ही नहीं, आसपास के सभी देशों के साथ आतंकवाद के खिलाफ काम करेगा। जाहिर है, इसमें पाकिस्तान का साथ देना भी शामिल है। खासकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के इस बयान के बाद कि वह भी आतंकवाद से पीड़ित है।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि चार दशक पहले जब इस्लाम के सबसे पवित्र स्थल मक्का पर चरमपंथियों ने हमला किया था तब पाकिस्तान के सैनिकों ने ही उनका खात्मा किया था। यह अलग बात है कि भारत और सऊदी अरब के संबंध काफी पुराने और प्रगाढ़ हैं। बीते 70 साल में तो ये दोनों ही देशों के लिए अपरिहार्य से हो गए हैं। हमारे करीब 40 लाख लोग सऊदी अरब में काम करते हैं। हर साल ये अरबों रुपए भारत को भेजते हैं। यह आंकड़ा 2017 में 69 अरब डॉलर का है। यह आंकड़ा उस निवेश से थोड़ा ही कम है जो सऊदी अरब भारत में करेगा। जाहिर है कि हमें उसके साथ नौकरी, कारोबारी और तेल के रिश्तों पर ही फोकस करना चाहिए। इससे हमें बेरोजगारी दूर करने में मदद मिलेगी, जिससे अंततोगत्वा आतंकवाद की ही जड़ कमजोर होगी। वैसे भी बुधवार को दोनों देशों के बीच जो समझौते हुए हैं, उनमें आतंकवादरोधी, समुद्री सुरक्षा, साइबर सुरक्षा और इंटेलिजेंस रिपोर्ट साझा करने जैसे क्षेत्रों में सहयोग निश्चित तौर पर लाभप्रद होंगे। पाकिस्तान को घेरने और आतंकवाद पर अलग-थलग करने के लिए भारत को फ्रांस, न्यूजीलैंड, अमेरिका जैसे बड़े देशों का समर्थन मिल ही रहा है।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि चार दशक पहले जब इस्लाम के सबसे पवित्र स्थल मक्का पर चरमपंथियों ने हमला किया था तब पाकिस्तान के सैनिकों ने ही उनका खात्मा किया था। यह अलग बात है कि भारत और सऊदी अरब के संबंध काफी पुराने और प्रगाढ़ हैं। बीते 70 साल में तो ये दोनों ही देशों के लिए अपरिहार्य से हो गए हैं। हमारे करीब 40 लाख लोग सऊदी अरब में काम करते हैं। हर साल ये अरबों रुपए भारत को भेजते हैं। यह आंकड़ा 2017 में 69 अरब डॉलर का है। यह आंकड़ा उस निवेश से थोड़ा ही कम है जो सऊदी अरब भारत में करेगा। जाहिर है कि हमें उसके साथ नौकरी, कारोबारी और तेल के रिश्तों पर ही फोकस करना चाहिए। इससे हमें बेरोजगारी दूर करने में मदद मिलेगी, जिससे अंततोगत्वा आतंकवाद की ही जड़ कमजोर होगी। वैसे भी बुधवार को दोनों देशों के बीच जो समझौते हुए हैं, उनमें आतंकवादरोधी, समुद्री सुरक्षा, साइबर सुरक्षा और इंटेलिजेंस रिपोर्ट साझा करने जैसे क्षेत्रों में सहयोग निश्चित तौर पर लाभप्रद होंगे। पाकिस्तान को घेरने और आतंकवाद पर अलग-थलग करने के लिए भारत को फ्रांस, न्यूजीलैंड, अमेरिका जैसे बड़े देशों का समर्थन मिल ही रहा है।
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