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created Mar 14th 2019, 10:28 by MayankKhare
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भीड़ हिंसक हो रही है। उसकी सहनशीलता जवाब दे रही है। पुलिस पर उसे विश्वास नहीं रहा। अदालत पर उसे यकीन नहीं। उसे लगता है कि पुलिस-प्रशासन और न्यायपालिका से शिकायत समय और धन की बर्बादी है। इसलिए जनता खुद न्याय कर रही है। यह स्थिति अत्यंत भयावह है। केवल गाइड लाइन जारी करना ही काफी नहीं, इस तरह के हालात क्यों बने, इस पर भी मंथन जरूरी है। पुलिस और न्यायपालिका को भी इस बाबत गंभीर होना होगा। भीड़ अगर कानून को अपने हाथ में ले रही है तो जाहिर तौर पर इसके लिए पुलिस-प्रशासन और कचहरी की उदासीनता ही बहुत हद तक जिम्मेदार है। लोकतंत्र में भले ही कानून को अपने हाथ्पा में लेने की इजाजत नहीं लेकिन जब पुलिस की भूमिका संदिग्ध हो, वह अपराधियों से गलबहियां करती दिखती हो। पीडि़त से ही आरोपितों जैसा सलूक करती हो तो जनात्र्कोश की उत्पत्ति स्वाभाविक भी है। जनता को नसीहत तो ठीक है लेकिन उसके धैर्य की परीक्षा लेना उचित नहीं है। बिहार में गत पांच दिनों ने उत्तेजित भीड़ ने पांच लोगों को मौत के घाट उतार दिया। अकेले बिहार में ही ऐसा हो रहा है, ऐसी बात नहीं है। देश के किसी न किसी कोने से अक्सर भीड़ की हिंसा कीह खबरें आती रहती हैं। भद्र समाज इसकी आलोचना भी करता है। आदिवासी राज्यों में नक्सली आज भी अदालत लगाकर निर्णय करते हैं। हरियाणा और राजस्थान की खाप पंचायतों के निर्णय पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय तक को मॉब लिंचिंग पर गाइड लाइन जारी करनी पड़ती है लेकिन समस्या का समाधान होता नजर नहीं आ रहा है। भीड़ पर कानून का कोई खौ। नजर नहीं आ रहा है। मानवता और दया के भाव तो जैसे तिरोहित ही हो चुके हैं। उत्तेजित भीड़ न केवल कानून को अपने हाथ में ले रही है बल्कि ऑनस्पॉट फैसला भी सुना रही है। अपराधी को उसकी जान लेकर ही छोड़ रही है। भीड़ में शामिल सभी लोग हमलावर तो नहीं होते लेकिन उनमें ज्यादातर तमाशबीन जरूर होते हैं। वे चाहें तो भीड़ के चंगुल में फंसे व्यक्ति को बचा सकते हैं लेकिन उन्हें घायल को पीटने का वीडियो बनाने से फुर्सत मिले तब न। उनके लिए घटना का वीडियो-बनाना और उसे वायरल करना ज्यादा अहम होता है। कहीं बच्चों के विवाद में महिला की पीट-पीटकर हत्या, कहीं अफवाह की वजह से युवक की हत्या, कहीं लुटेरे को ऑन स्पॉट सजा तो कहीं हथियारबंद अपराधियों को भी पीटकर मार डालना, यह सब भारतीय कानून व्यवस्था का मजाक नहीं तो और क्या है।
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