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created Mar 15th 2019, 02:29 by VivekSen1328209
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सही खानपान के अभाव में गरीब देशों में स्वास्थ्य समस्याएं बनी रहती हैं। लोगों के पास जैसे ही थोड़ा पैसा आने लगता है उन्हें वक्त पर भोजन मिलने लगता है लेकिन वे स्वास्थ्य मामले में लाभ की स्थिति भी गंवाने लग जाते हैं। दरअसल वे नमक, चीनी और वसा की अधिकता वाले प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सेवन करने लगते हैं जो उन्हें मोटा और बीमार बनाने लगता है। हालांकि जब समाज में समृद्धि काफी बढ़ जाती है तब उन्हें सही खानपान से होने वाले लाभों का अहसास होता है। यि विडंबना ही है कि भारत में ये सारी स्थितियां एक साथ घट रही हैं। कुपोषण की बड़ी चुनौती के साथ ही हम मोटापे और उससे जुड़ी मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप की बीमारियों का भी सामना कर रहे हैं। लेकिन हमें इस मामले में थोड़ी बढ़त भी हासिल है कि हम सही खानपान की अपनी संस्कृति अभी तक भूले नहीं हैं। अब भी पोषण, प्रकृति और अजीविका के तार जुड़े हुए हैं। करोड़ों भारतीयों को अब भी थोड़ा भोजन ही मिलता है क्योंकि ये अधिकतर गरीब हैं। हमारे सामने यह चुनौती और सवाल है कि इनके पास पैसे आने पर भी क्या वे पहले की तरह प्रकृति से मिले खाद्यान्नों से बना पौष्टिक भोजन ही करते रहेंगे। यह असली परीक्षा है।
लेकिन ऐसा करने के लिए हमें अपनी खानपान की आदतें ठीक करनी होंगी। हमें समझना होगा कि पैसे आने पर गलत खानपान से अपनी स्वास्थ्य बढ़त को गंवा देना महज आकस्मिक नहीं है। ऐसा प्रसंस्कृत खाद्य उद्योग के कारण है क्योंकि सरकारों ने पोषण के मामलों में नियमन बंद कर दिया है। इस तरह उन्होंने शक्तिशाली खाद्य उद्योग को हमारे जीवन कारोबार के सबसे अहम तत्व खानपान का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का मौका दे दिया है है। हमें यह समझने की भी जरूरत है कि गलत खानपान का संबंध कृषि के बदलते तरीकों से जुड़ा हुआ है। इस तरह खाद्य कारोबार एकीकृत एवं उद्योग का रूप ले लेता है। यह मॉडल सस्ते भोजन की आपूर्ति पर बना हुआ है। जिसमें रासायनिक पदार्थ मौजूद होते हैं। नाम भले ही बदल जाए लेकिन खानपान में मौजूद कीटनाशक एवं एंटीबॉडी का बस स्वरूप ही बदलता है।
दरअसल हमें कृषि वृद्धि के ऐसे मॉडल की जरूरत है जो स्थानीय स्तर पर उपजने वाले बढ़िया खाद्यान्नों को अहमियत दे। इस मॉडल में पहले कीटनाशकों का इस्तेमाल कर उससे सबक सीखने की प्रवृत्ति से परहेज किया जाएगा। भले ही इस मॉडल को अपनाना मुश्किल है लेकिन ऐसा करने से ही हमें पोषणयुक्त आहार मिलने के साथ आजीविका की सुरक्षा भी मिल सकेगी। फिर भी खाद्य सुरक्षा व्यवसाय का डिजाइन ऐसा है कि साफ-सफाई एंव मानकों पर ध्यान दिया जाए।
लेकिन ऐसा करने के लिए हमें अपनी खानपान की आदतें ठीक करनी होंगी। हमें समझना होगा कि पैसे आने पर गलत खानपान से अपनी स्वास्थ्य बढ़त को गंवा देना महज आकस्मिक नहीं है। ऐसा प्रसंस्कृत खाद्य उद्योग के कारण है क्योंकि सरकारों ने पोषण के मामलों में नियमन बंद कर दिया है। इस तरह उन्होंने शक्तिशाली खाद्य उद्योग को हमारे जीवन कारोबार के सबसे अहम तत्व खानपान का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का मौका दे दिया है है। हमें यह समझने की भी जरूरत है कि गलत खानपान का संबंध कृषि के बदलते तरीकों से जुड़ा हुआ है। इस तरह खाद्य कारोबार एकीकृत एवं उद्योग का रूप ले लेता है। यह मॉडल सस्ते भोजन की आपूर्ति पर बना हुआ है। जिसमें रासायनिक पदार्थ मौजूद होते हैं। नाम भले ही बदल जाए लेकिन खानपान में मौजूद कीटनाशक एवं एंटीबॉडी का बस स्वरूप ही बदलता है।
दरअसल हमें कृषि वृद्धि के ऐसे मॉडल की जरूरत है जो स्थानीय स्तर पर उपजने वाले बढ़िया खाद्यान्नों को अहमियत दे। इस मॉडल में पहले कीटनाशकों का इस्तेमाल कर उससे सबक सीखने की प्रवृत्ति से परहेज किया जाएगा। भले ही इस मॉडल को अपनाना मुश्किल है लेकिन ऐसा करने से ही हमें पोषणयुक्त आहार मिलने के साथ आजीविका की सुरक्षा भी मिल सकेगी। फिर भी खाद्य सुरक्षा व्यवसाय का डिजाइन ऐसा है कि साफ-सफाई एंव मानकों पर ध्यान दिया जाए।
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