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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open

created Apr 19th 2019, 13:00 by


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देश इस समय उन्‍मत्‍त चुनावी कवायद में उलझा हुआ है लेकिन विदेश नीति एक ऐसा विषय है जो शायद ही कभी मतदाताओं की कल्‍पनाशीलता को जगाता हो। पाकिस्‍तान के साथ रिश्‍तों की बात अपवाद अवश्‍य हो सकती है लेकिन अतीत में कभी भी यह साबित नहीं हुआ है कि राष्‍ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर भी वोट जुटाया जा सकते हैं। यही बात बालाकोट घटना पर भी लागू होती है जहां सत्‍ताधारी दल ने घटना को गहरे राष्‍ट्रवादी रंग में रंगने की कोशिश की लेकिन वह बहुत तेजी से फीका पड़ रहा है। पहले कुछ अन्‍य चुनावों की तरह ही इस बार भी चुनाव प्राथमिक तौर पर घरेलू मुद्दों से ही निर्धारित होंगे। हालांकि विदेश नीति भी चर्चा का विषय है। विदेशी नीति के मुद्दों को लेकर पार्टियों का रुख अलग-अलग हो सकता है। नेतृत्‍व शैली अलग हो सकती है और अतीत से कुछ अलग रुख देखने को मिल सकता है। परंतु देश के बाहरी रिश्‍तों में मोदी के पिछले पांच साल के कार्यकाल में कोई व्‍यापक बदलाव नहीं आया है। आने वाली सरकार चाहे जिस राजनीतिक विचारधारा की हो, उनमें आने वाले समय में भी कोई बदलाव आता नहीं दिखता।
    सवाल यह हे कि विदेश नीति के मोर्चें पर मोदी सरकार के प्रदर्शन को किस प्रकार आंका जाए। यहां तीन अलग-अलग विशेषताएं हैं जो दिमाग में आती हैं। पहली बात मोदी ने व्‍यक्तिगत कूटनीति के मूल्‍य में बहुत अधिक यकीन दिखाया है और तमाम मुद्दों को हल करने में उन्‍होंने नेताओं के बीच व्‍यक्तिगत संपर्क को तवज्‍जों दी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पूर्व अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा के साथ उनके रिश्‍तों ने भारत और अमेरिका के रिश्‍तों को मजबूत करने और उन्‍हें विस्‍तार देने में काफी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे के बीच जो सकारात्‍मक और सुस्‍पष्‍ट रिश्‍ता है, उसने दोनों देशों के रिश्‍तों को अप्रत्‍याशित ऊंचाई प्रदान की है। परंतु यह दलील दी जा सकती है कि मोदी उन अहम कारकों का फायदा उठा रहे थे जो पहले ही अमेरिका और जापान को भारत के करीब ला रहे थे। चीन का उभार भी इसमें एक प्रमुख कारकथा। मोदी को ट्रंप और चीन के राष्‍ट्रपति शी चिनफिंग के साथ रिश्‍तों में कोई बहुत अधिक कामयाबी नहीं मिली।  
    मिसाल के तौर पर गत वर्ष जून में वुहान शिखर बैठक में भी चीन ने भारत की वास्‍तविक चिंताओं को कुछ खास तवज्‍जों नहीं दी।  
     

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