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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open
created May 9th 2019, 11:07 by ddayal2004
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देश का लोकतंत्र इसलिए अब तक मजबूत हो सका है कि यहां न केवल सहमति-असहमति के लिए पर्याप्त गुंजाइश है, बल्कि सम्मानजनक जगह है। इससे भी अच्छी बात यह है कि लोकतंत्र को मजबूत करने वाली अमूमन सभी संस्थाएं अपने कामकाज को लकर पारदर्शिता बरतती हैं और आम अवाम को उनके फैसलों और उसकी प्रक्रिया के बारे में जानने का हक होता है। लेकिन देश की दिशा तय करने वाली किसी संस्था के काम को लेकर अगर आधी-अधूरी जानकारी सामने आती है या फिर लोगों के सामने अनुमान के आधार पर राय बनाने की नौबत पैदा होती है तो यह कोई आदर्श स्थिति नहीं है। गौरतलब है कि सत्रहवीं लोकसभा के लिए जारी चुनावों के दौरान आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों पर केंद्रीय चुनाव आयोग की सुनवाई और उसके फैसलों पर उठे सवालों के संदर्भ में यह खबर आई कि आयोग के सदस्यों के बीच असहमति के स्वर भी उभरे, लेकिन उसके बारे में शिकायतकर्ता को पता नहीं चला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बारे में चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने की शिकायत पर आयोग ने क्लीन चिट दी। लेकिन खबरों के मुताबिक आयोग में इसे लेकर सर्वसम्मति नहीं थी और एक सदस्य ने उसके फैसले से असहमति जताई थी। कायदे से आयोग के पास पहुंची शिकायत, उस पर सुनवाई और फैसलों पर सर्वसम्मति और बहुमत का पूरा ब्योरा रिकार्ड में दर्ज होना चाहिए। लेकिन कुछ वजहों से ऐसा नहीं हो पाया था। अब इस मसले पर दो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने अपनी राय जाहिर की है। एक का कहना है कि आयोग के फैसले से सचिव शिकायतकर्ता को अवगत कराता है, मगर उस सूचना में यह साफ होना चाहिए कि फैसला सर्वसम्मति से लिया गया या बहुमत से। यानी शिकायतकर्ता को यह जानने का हक है कि किस सदस्य ने असहमति जाहिर की। इस मसले पर दूसरे पूर्व आयुक्त की राय है कि सुप्रीम कोर्ट की तरह चुनाव आयोग की वेबसाईट पर भी असहमति का नोट देना चाहिए। जाहिर है, दोनों पूर्व आयुक्तों ने ऐसी पारदर्शिता की वकालत की है, जिसके बूते चुनाव आयोग की विश्वसनीयता बनी हुई है। यों भी, अगर कोई पक्ष चुनाव आयोग के पास शिकायत लेकर पहुंचता है तो इस भरोसे के साथ ही कि वहां उस पर निष्पक्ष सुनवाई होगी और जो भी फैसला होगा, उसके बारे में पूरी जानकारी मुहैया कराई जाएगी। किन्ही स्थितियों में ऐसा नहीं होता है तो जानकारी के अभाव में भ्रम की हालत पैदा होती है। भारत में चुनाव आयोग एक ऐसी संस्था है, जिसके बारे में आमराय यही रही है कि उसके कामकाज और फैसलों में इस स्तर की निष्पक्षता होती है कि उस पर कोई विवाद नहीं हो। यह इसलिए संभव हो सका है कि आमतौर पर आयोग समूची चुनाव प्रक्रिया से लेकर किसी भी पार्टी के बारे में सकारात्मक या नकारात्मक स्तर पर लिए गए फैसलों में जरूरी संतुलन और निष्पक्षता बरतता है। यही वजह है कि उसके ज्यादातर फैसलों को लेकर लोगों और राजनीतिक दलों के बीच कोई बड़ी शिकायत नहीं पाई जाती।
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