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created May 15th 2019, 12:06 by DeendayalVishwakarma
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सिक्किम की पर्वतीय ऊंचाइयों पर बर्फ से घिरकर सैकड़ों याक की मौत बहुत दुखद और शर्मनाक है। दिसंबर से अप्रैल तक लगभग पांच महीने तक उत्तरी सिक्किम की मुगुथांग और युमथांग घाटियों में एक-एक कर केवल याक ही नहीं मरे होंगे, उनके साथ मनुष्य और उसकी कथित मानवता पर उसका विश्वास भी तिनका-तिनका मरा होगा। महात्मा गांधी की वह प्रसिद्ध टिप्पणी फिर ताजा हो गई हैं और हमें चिढ़ा रही है। महात्मा ने कहा था, किसी देश की महानता उस देश द्वारा उसके जानवारों के साथ किए जाने वाले व्यवहार से परखी जाएगी। अब दोष किसको दिया जाय क्या उन आम लोगों को, जिन्होंने अपने पालतू याक को भूख से तिल-तिल मरने को छोड़ दिया या उस सरकार को, जिसने याक की स्थिति का पता लगाने और उन तक घास पहुंचाने के लिए कुछ भी खास नहीं किया। अब पहाड़ों पर जब बर्फ पिघली है, तो पता चला है कि दोनों घाटियों में सैकड़ों याक भूख की भेंट चढ़ गए। बर्फबारी के मौसम में याक को ऊंचे पहाड़ों पर ही छोड़कर स्वयं नीचे सुरक्षित शरण लेने की कथित मानवीय परंपरा इतनी भारी पड़ेगी, शायद किसी ने नहीं सोचा होगा। मानवीय सोच का यह अभाव जाहिर करता है कि हम अपने पशुओं के बारे में कितना कम सोचते हैं। हिमालय के पूरे क्षेत्र में याक बहुपयोगी है। गाय-भैंस की मिलती-जुलती देहाकृति वाला यह जीव दूध, मांस तो देता ही है, गाड़ी भी खींचता है, हल भी जोतता है और सीधे सवारी भी कराता है। इसका उपयोग खेल में भी होता है। कभी यह जीव जंगली था, लेकिन वह जल्दी ही घरेलू हो गया, लेकिन हम कथित घरेलू मनुष्यों पर यह जीव आज सवालिया निशान लगा गया है।
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