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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || CPCT_Admission_Open

created Jun 8th 2019, 11:07 by


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किसी भी देश में विकास के चढ़ते ग्राफ के बरक्‍स अगर जन्‍म के बाद शिशुओं की मौत के आंकड़े चिंता पैदा करते हों तो उस पर सवाल उठना लाजिमी है। भारत में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं में सुधार के तमाम दावों के बावजूद प्रसव के दौरान माताओं और शिशुओं की मौत की दर पर काबू पाने में कामयाबी नहीं मिल पाई है। हालांकि पिछले कुछ सालों के दौरान इसमें कुछ सुधार जरूर दर्ज किया गया है, लेकिन इससे संबंधित आंकड़ों को अब भी संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। हाल ही जारी हुए एसआरएस यानी सैंपल रजिस्‍ट्रेशन सिस्‍टम की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक देश के कुछ राज्‍यों में जहां शिशु मृत्‍यु दर में कमी आई है, वहीं कई राज्‍यों के आंकड़े अभी भी चिंताजनक हैं। मसलन, मध्‍यप्रदेश में आज भी जन्‍म लेने के बाद प्रति एक हजार बच्‍चों में से सैंतालीस की मौत पांच साल की उम्र तक पहुंचने के पहले ही हो जाती है। राज्‍य के ग्रामीण इलाकों में स्थिति और ज्‍यादा बुरी है और शिशुओं के मरने का आंकड़ा इक्‍यावन तक है। उत्‍तर प्रदेश में भी हालत बेहद निराशाजनक है और प्रति एक हजार बच्‍चों में से इकतालीस बच्‍चों की मौत असमय ही हो जाती है। मामूली सुधार बिहारी में देखा गया है, जहां अब नवजात बच्‍चों के मरने का यह अनुपात पैंतीस है। देश के कुछ अन्‍य राज्‍यों में कोई खास बदलाव नहीं दर्ज किया गया है। इसके बावजूद केरल और नागालैंड जैसे कुछ राज्‍य यह आदर्श सामने रखते हैं कि मामूली इच्‍छाशक्ति के साथ इस गंभीर समस्‍या को काबू में किया जा सकता है। केरल में प्रति एक हजार शिशुओं में से जहां यह संख्‍या दस है, वहीं नागालैंड में महज सात। यानी कुछ राज्‍यों में काफी सकारात्‍मक सुधार के बावजूद दूसरे कई राज्‍यों में अपेक्षित बदलाव देखने में नहीं आया है और यही वजह है कि समूचे देश के स्‍तर पर यह आंकड़ा प्रति एक हजार में तैंतीस बच्‍चों का है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में कुपोषण की समस्‍या से लेकर स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं तक के मामले में दावे और हकीकत क्‍या हैं। सही है कि पिछले दो-ढ़ाई दशकों के दौरान देश भर में इस समस्‍या पर काबू पाने के मकसद से सरकारों की ओर से गर्भवती माताओं के पोषण के लेकर नवजातों के टीकाकरण जैसे अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।  

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